लिवर खराब सिर्फ शराब की वजह से नहीं, बहुत और कारण से भी होते हैं, जाने एक्सपर्ट की सलाह
Saral Kisan : लिवर, इंसान के शरीर का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंग है। शरीर से गंदगी को बाहर निकालने का काम भी लिवर करता है। लिवर ही शराब पीने से निकलने वाले टॉक्सिक पदार्थों को निकालने, पित्त को निकालने और खाना पचाने का काम करता है। यह किसी से छुपा नहीं है। हम सब जानते हैं कि शराब शरीर के लिए जहर है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और अध्ययनों से पता चला है कि लिवर शराब को फिल्टर करते समय स्वस्थ लिवर सेल्स मर जाते हैं। भले ही लिवर नए सेल्स बनाता है लेकिन उसे बनने में काफी वक्त लगता है.
हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी से पीड़ित हैं इतने करोड़ लोग-
'ओनली माई हेल्थ' के इंग्लिश पॉर्टल में छपी खबर के मुताबिक हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी जैसे संक्रमणों से लीवर में सूजन के साथ-साथ कई तरह से नुकसान हो सकती है. अगर सही समय पर इलाज न किया जाए तो क्रोनिक हेपेटाइटिस संक्रमण सिरोसिस या लीवर कैंसर में बदल सकता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक दुनिया भर में अनुमानित 35.4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी या सी से पीड़ित हैं. जिनमें से अधिकांश लोगों तक ही समय रहते इलाज पहुंच पा रही है. लिवर खराब होने के सामान्य लक्षणों में बुखार, अस्वस्थता, भूख न लगना, दस्त, मतली, पेट की परेशानी, गहरे पीले रंग का टॉयलेट और जॉन्डिश शामिल हैं, जिसमें त्वचा और आंखों के सफेद भाग का पीला पड़ना शामिल है.
गैर-अल्कोहलिक फैटी लीवर की बीमारी:
एनएएफएलडी लिवर में फैट के असामान्य संचय को संदर्भित करता है, जो अक्सर मोटापे, इंसुलिन प्रतिरोध और मेटाबोलिक सिंड्रोम से जुड़ा होता है. 'जर्नल क्लिनिकल एंड मॉलिक्यूलर हेपेटोलॉजी' में पब्लिश एक रिसर्च के अनुसार, एनएएफएलडी दुनिया भर में लिवर की बीमारी का एक प्रमुख कारण है. प्रति 1,000 जनसंख्या पर 47 मामलों की अनुमानित वैश्विक घटना है. रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है. अगर इसका समाधान वक्त रहते नहीं किया गया, तो एनएएफएलडी गैर-अल्कोहल स्टीटोहेपेटाइटिस (एनएएसएच) और सिरोसिस में बदल सकता है.
ऑटोइम्यून लिवर की बीमारी जिनमें ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस, प्राथमिक पित्त सिरोसिस और प्राथमिक स्क्लेरोज़िंग कोलेजनिटिस शामिल हैं, तब होते हैं जब प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से स्वस्थ यकृत कोशिकाओं को लक्षित करती है और उन्हें नुकसान पहुंचाती है. यदि इसका समाधान नहीं किया गया तो इससे मरीज़ों को लिवर सिरोसिस और लिवर विफलता का सामना करना पड़ सकता है, जिसके लिए लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ सकती है.
लिवर फेल होने के जेनेटिक कारण-
यह एक विकार है, जिसमें माता-पिता अपने जीन परिवर्तन को अपने बच्चों में स्थानांतरित कर सकते हैं, जिससे उनमें यकृत रोग विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है. कुछ सामान्य आनुवांशिक स्थितियां जैसे हेमोक्रोमैटोसिस (अत्यधिक आयरन का निर्माण), विल्सन रोग (कॉपर का निर्माण), और अल्फा -1 एंटीट्रिप्सिन की कमी से समय के साथ लीवर को नुकसान हो सकता है.