सूखा प्रभावित क्षेत्र के लिए धान की ये किस्म बनी किसानों का बैंक, मिलता है मोटा मुनाफा
Paddy Farming : बरसात का मौसम शुरू होते ही धान का सीजन चालू हो जाता है। देश के अनेकों राज्यों में जून में धान की रोपाई शुरू कर दी जाती है। परंतु कुछ राज्य ऐसे हैं जहां पर कम पानी की वजह से किसान धान कि अगेती बुवाई नहीं कर पाते है। उन किसानों के लिए धान कि ये किसम होगी वरदान साबित, चलिए जानते हैं।
Paddy Variety : देश में सभी राज्यों के किसानों ने धान की बुवाई कर ली है। परंतु कुछ राज्य ऐसे है जहां धान की खेती सूखे की वजह से अब तक नहीं हुई है। धान की फसल को पकाने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। यह सब देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी वैरायटी तैयार की है जिसमे कम पानी की आवश्यकता होती है। सुख प्रभावित क्षेत्र के लिए यह किस्म वरदान साबित है।
कम पानी वाले क्षेत्र के लिए वेरायटी
सीआर धान 808: धान की खेती के लिए अगर आपके पास सिंचाई के सीमित संसाधन नहीं हैं तो आपको सीआर धान 808 किस्म का चयन करना चाहिए. इस किस्म की खेती सीधे बीज बोने वाले सूखा और कम वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है. वहीं, ये किस्म मात्र 90-95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म से 17 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज ले सकते हैं. ये किस्म ब्लास्ट, ब्राउन स्पॉट, गैलमिज, स्टेम बोरर, लीफ फोल्डर और व्हाइट बैक्ड प्लांट हॉपर कीट और रोगों से प्रतिरोधी है. इस किस्म की खेती बिहार झारखंड में अधिक मात्रा में की जाती है.
किस तरह करें बुवाई
धान की खेती में बंपर पैदावार लेने के लिए हरी खाद या 10-12 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी गोबर का प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा रोपाई करने में पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 20-30×15 सेंमी की होनी चाहिए. धान की रोपाई 3 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए. साथ ही एक जगह पर 2-3 पौधे ही लगाने चाहिए. ऐसा करने से अधिक पैदावार होती है. साथ ही खरपतवार साफ करने में भी फसलों को कम नुकसान होता है.
खाद का उपयोग
धान की खेती में खाद का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. धान की सूखे क्षेत्रों वाले प्रजातियों के लिए 100-120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश और 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा बासमती किस्मों के लिए 80-100 किलो नाइट्रोजन, 50-60 किलो फास्फोरस, 40-50 किलो पोटाश और 20-25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए.