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90 दिन में तैयार होती है यह फसल, कम लागत में देगी बंपर मुनाफा

How To Cultivate Groundnut :देश के किसान पारंपरिक खेती को छोड़ नगद फसल की ओर काफी आकर्षित हो रही है। किस कम लागत और समय में पकाने वाली फसलों की तरफ काफी ध्यान दे रहे हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं मूंगफली की खेती की जो बिल्कुल कम लागत में किसानों के लिए कारगर साबित होगी।

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90 दिन में तैयार होती है यह फसल, कम लागत में देगी बंपर मुनाफा

Profit In Groundnut Cultivation : फिलहाल खरीफ फसलों का सीजन चल रहा है। खरीफ सीजन में नरमा, कपास, धान, मूंगफली, ग्वार, बाजार, मूंग, मोठ, ज्वार तथा मक्का की खेती की जाती है। जिसमें मूंगफली की खेती किसानों के लिए एक नगदी फसल की तरह है। यह फसल थोड़े समय तथा कम लागत में किसानो की तिजोरी भर देती है।

मूंगफली एक ऐसी फसल है जिसमें कम लागत में अत्यधिक मुनाफा लिया जा सकता है। किसान मूंगफली की फसल के साथ-साथ उसका भूसा भी अच्छे रेट में भेज सकते हैं। मूंगफली कम समय की अवधि में पकने वाली फसल है। इस फसल में पानी की भी कम जरूर होने की वजह से यह किसानों के लिए बेहद कारगर साबित है। क्योंकि इसकी मार्केट में सर्दियों के समय काफी ज्यादा मांग होती है। मांग अधिक होने के कारण किसानों को भाव अच्छा मिलता है।

कितने दिन में फसल हो जाती है तैयार

मूंगफली जलवायु के प्रतिनिकुल अच्छी फसल है। इसे पकने में 90 दिन का समय लगता है। इसके साथ इसकी यह भी खास बात है कि बोने के बाद केवल दो बार सिंचाई करनी पड़ती है। अच्छी पैदावार के लिए किसानों को खरपतवार का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए आजकल तो मार्केट में बहुत सारी खरपतवार नाशक दवाइयां भी आई हुई है। जिसका प्रयोग कर किसान अच्छा लाभ ले सकते हैं।

किस तरह करें बजाई

मूंगफली की  बिजाई करने से पहले  खेत की तीन से चार बार गहरी जुताई करनी पड़ती है। किसान जुताई करते समय पलाऊ का उपयोग करें क्योंकि पलाऊ एक ऐसा कृषि यंत्र है जो जमीन की मिट्टी को पलट देता है। मिट्टी पलटने के कारण धूप तथा हवा निकालने की वजह से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि होती है। इसके साथ ही जमीन में नमी बनी रहती है। मूंगफली की फसल को लंबे समय के लिए नमी की जरूरत होती है।

खाद का प्रयोग

मूंगफली की फसल बोने के बाद सबसे पहले किसान को अपने खेत में मिट्टी के हिसाब से डीएपी, पोटाश तथा सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। फसल बोने के 30 दिन बाद सिंचाई करते समय प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 25 किलोग्राम डीएपी की मात्रा डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिंक तथा सल्फर भी कृषि विज्ञानों को कोई सलाह के अनुसार डालनी चाहिये। पहली सिंचाई के तुरंत बाद खरपतवार का विशेष ध्यान रखना होता है। इसके साथ ही खेत की मिट्टी को सख्त नहीं होना देना चाहिए।

बीज दर

किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से 30 kg बीज की मात्रा डालनी चाहिए। बिजाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह सिंचाई करनी चाहिए। इसके तुरंत बाद  जमीन की बुवाई कर उसमें नमी बनाए रखने के लिए पाटा का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि पता जमीन में हवा नहीं लगने देता, जिसकी वजह से जमीन में नमी बनी रहती है।

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