कॉटन की फसल में गुलाबी सुंडी से इस तरह करें बचाव, किसानों को नुकसान पंहुचा रही पिंक बॉल वार्म
Cotton Crop : भारत देश के अनेको राज्य में किसान कॉटन की खेती कर रहे हैं। कॉटन फसल की सबसे बड़ी दुश्मन गुलाबी सुंडी और टिंडा गलन रोग होते हैं। यह बीमारियां नरमा की फसल के लिए बेहद खतरनाक होती है। पिछले साल भी किसान इन बीमारियों से काफी प्रभावित हुए हैं। चलिए जानते हैं इन बीमारियों का रोकथाम कैसे करें।
Pink Ballworm : हरियाणा पंजाब में नरमे की फसल लगभग अपने फाल पर आ चुकी है। इस समय किसानों को फसल को बीमारी से बचने के लिए सचेत रहना पड़ता है। कॉटन की फसल को सबसे ज्यादा गुलाबी सुंडी और टिंडा गलन बीमारी प्रभावित करती है। यह दोनों बीमारियां बेहद खतरनाक होती है। किसान अगर उनकी तरफ ज्यादा दिन ध्यान ना दे तो पूरी फसल को चौपट कर देती है। किसानों को इस समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए हिसार हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया है। इस प्रोग्राम में किसानों को इस बीमारी से निपटने का हल बताया गया है।
हरियाणा में स्थित चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को बताया कि हरियाणा कपास अनुसंधान केंद्र समय-समय पर कॉटन फसल की एडवाइजरी बताता रहता है जिसका पालन कर किसान बंपर पैदावार ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से कीटों से निपटने के लिए जरूरी सुझाव दिए गए हैं। किसान इन सलाह पर गौर कर गुलाबी सुंडी और टिंडा गैलन बीमारी से निजात पा सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिको ने जानकारी देते हुए कहा कि किसान नरम और कपास की फसल मैं गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए दो फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ पर लगे। हर हफ्ते लगभग 150-200 फूलों पर चेक करते रहे। टिंडे बनने पर 15 से 20 टिंडे तोड़कर उन में गुलाबी सुंडी का निरक्षण करें। अगर किसान को 12 से 15 गुलाबी सुंडी प्रति जांच या प्रति ट्रैप पर और तीन रातों 5 से 10% टिंडा ग्रस्त मिलने पर कितना का प्रयोग करें।
क्षतिग्रस्त होने पर फसल को रोग से कैसे बचाव करें
किसान नरमे कपास की फसल में गुलाबी सुंडी और टिंडा गलत रोग पाए जाते है तो किसान प्रोफेनोफास 50 ईसी की 3 मिली लीटर मात्रा प्रति लीटर पानी मैं मिलाकर छिड़काव कर दे। और कय्यूनालफॉस 25 ईसी की तीन से चार मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
हरा तेला और सफेद मक्खी
किसान अपनी फसल पर हरा तेला और सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर फ्लोनिकामिड 50 डब्यूजी 60 ग्राम या एफिडोपायरोप्रेन 50 जी/एल की 400 मिलीलीटर मात्रा प्रति एकड़ छिड़काव करें।
फसल में जड़ गलन रोग के लिए कार्बोडीजियम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मैं मिलकर जड़ों में डालें और टिंडा गलत रोग के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।
खाद का उपयोग
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया इस समय बरसात का मौसम नरमे की फसल को खाद देने के लिए उचित है। कृषि वैज्ञानिकों ने कहा एक बैग डीएपी के साथ आधा बैग यूरिया की बिजाई कर सकते हैं। इस समय खाद देने पर फसल देगी बंपर पैदावार। इन उपायों से किसान अपनी नरमे की फसल को टिंडा गलन तथा गुलाबी सुंडी पेपर कॉप से बचा सकते हैं।
हरियाणा पंजाब में गुलाबी सुंडी का प्रकोप पिछले साल से देखा जा रहा है। कृषि विभाग की टीम ने सर्वे का कार्य शुरू कर दिया है। दोनों राज्यों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप गंभीर समस्या है। दोनों रोगों को लेकर किसान बेहद परेशान है। किसानों का पेस्टिसाइड खर्च अधिक लग रहा है और पैदावार कम हो रही है।