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इस तरह बढ़ रहा है समुन्द्र का जल स्तर, NASA ने बताया कब तक डूब जाएगी दुनिया

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Saral Kisan: नासा द्वारा जारी की गई एक एनिमेशन वीडियो में दिखाया गया है कि पिछले 30 सालों में समुद्री जलस्तर करीब 10 सेंटीमीटर यानी 3.5 इंच बढ़ गया है. यदि यह बढ़ता ही रहा तो कई देश, द्वीप और तटीय क्षेत्रों को डूबने का सामना करना पड़ेगा.

इस वीडियो को नासा के साइंटिफिक विजुअलाइजेशन स्टूडियो के डेटा विजुअलाइजर एंड्र्यू जे. क्रिस्टेनसेन ने आधार बनाकर तैयार किया है. उन्होंने कई सैटेलाइट्स के डेटा का विश्लेषण किया है, जो 1993 से 2022 तक का है. यह वीडियो आम एनिमेशन से भिन्न है, क्योंकि इसमें वर्षों के डेटा का विश्लेषण किया गया है.

10 सेंटीमीटर में समुद्री जलस्तर का वृद्धि अभिसंख्यात नहीं होता है, लेकिन यह स्थिति चिंताजनक है. यह बढ़ते जलस्तर का कारण निरंतर बदलते हुए जलवायु और गर्मियों का प्रभाव है, जो ग्लेशियरों पर पड़ता है. यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर भी प्रभाव डालता है, जिससे वहां के बर्फ पिघलती है और पहाड़ों की ग्लेशियर से बहकर नदियों के माध्यम से समुद्र का जलस्तर बढ़ता है.

आपने वीडियो के माध्यम से समुद्री जलस्तर के बढ़ने और तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को आने वाली दिक्कतों के बारे में चिंता व्यक्त की है. आपकी चिंता समझने के लिए धन्यवाद. यह बात सही है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जलस्तर में वृद्धि हो रही है और इससे तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को समस्याएं हो सकती हैं.

1993 से 2002 के दशक में होने वाली जलस्तर की बढ़ोतरी की दर से अब हालात और खराब हो रहे हैं. इस तरह के बदलाव का मुख्य कारण तापमान की वृद्धि है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्री पानी में वृद्धि हो रही है. 2013 से 2022 के बीच, समुद्री जलस्तर हर साल 4.62 मिलिमीटर की दर से बढ़ा है, जो कि 1993 से 2002 की दर से दोगुनी है.

ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्री जलस्तर की वृद्धि के कारण संयुक्त राष्ट्र और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने चेतावनी दी है कि यह खतरनाक प्रक्रिया है. इसका मुख्य कारण है अत्यधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन. समुद्री जलस्तर की वृद्धि इस सदी में और आगे भी होती रहेगी, और आगे कई हजार सालों तक जारी रहेगी.

समुद्री जलस्तर के बढ़ने से कम ऊंचाई वाले द्वीप और तटीय क्षेत्रों को खतरा है. तुवालू जैसे द्वीपों को इससे सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए, क्योंकि समुद्री जलस्तर की बढ़त के कारण ये द्वीप समाप्त हो सकते हैं. अंटार्कटिका में बर्फ भी तेजी से पिघल रही है, जिसके कारण ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ पिघलने की दर तेज हो रही है.

पिछले साल यूरोप में हीटवेव के कारण 15 हजार लोगों की मौत हुई है. वैश्विक तापमान प्री-इंडस्ट्रियल समय से 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक है. यह स्थिति जब ला-नीना क्लाइमेट था, तब हुई है. मौसम विज्ञानी चेतावनी देते हैं कि साल 2023 या 2024 में औसत तापमान का रिकॉर्ड टूट सकता है, जो कि जलवायु परिवर्तन और एल-नीनो के कारण हो सकता है.

डेढ़ डिग्री सेल्सियस के तापमान के बढ़ जाने से भी बहुत समस्याएं पैदा हो सकती हैं, और इससे कई देशों को सामना करना पड़ेगा. WMO के अनुसार, पिछले साल वैश्विक तापमान पांचवां या छठा सबसे गर्म साल रहा है, और प्री-इंडस्ट्रियल समय की तुलना में यह 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक है.

मौसम विज्ञानियों की चेतावनी है कि समुद्री जलस्तर की वृद्धि, ग्रीनहाउस गैसों के निकलने और अत्यधिक तापमान के कारण हो रही है. ये परिवर्तन अगले कुछ दशकों और हजारों सालों तक जारी रहेंगे. इसलिए, हमें इन परिस्थितियों को संशोधित करने की आवश्यकता है, ताकि आगामी पीढ़ियों को किसी भी परेशानी से निपटने में मदद मिल सके.

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