चेक बाउंस को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश, अब नहीं होगा इस स्थिति में दोषी

Supreme Court Decision On Cheque Bounce : सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है कि चेक बाउंस केवल इसलिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि वह व्यक्ति उस फर्म में पार्टनर था और लोन के लिए गारंटर था।
शीर्ष अदालत ने निर्णय दिया कि एनआई अधिनियम (Negotiable Instrument Act) की धारा 141 के तहत किसी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है सिर्फ इसलिए कि साझेदारी अधिनियम (Partnership Act) के तहत दायित्व भागीदार पर पड़ता है।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने निर्णय दिया कि कंपनी या फर्म को धारा 141 के तहत जवाबदेही नहीं दी जा सकती जब तक वे कोई अपराध नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होंगे और उन्हें प्रतिपक्षी नहीं ठहराया जाएगा जब तक कि कंपनी या फर्म ने मुख्य आरोपी के रूप में अपराध नहीं किया है।
कोर्ट में हैं, 34 लाख से ज्यादा चेक बाउंस के मामले
सुप्रीम कोर्ट एक फर्म द्वारा जारी किए गए चेक के बाउंस (cheque bounce case) के कारण अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया था। चेक पर एक और सहयोगी ने साइन किया था। फर्म को शिकायत में आरोपी नहीं बनाया गया।
आपको बता दें कि बैंक चेक बाउंस एक बड़ी समस्या है और देश की अदालतों में 34 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। जिसमें से पिछले पांच महीनों में 7.47 चेक बाउंस मामले सामने आए हैं।
आपको पता होना चाहिए कि चेक बाउंस नियमों का उल्लंघन करना अपराध है। चेक बाउंस नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 के अनुसार किसी व्यक्ति पर केस चलाया जा सकता है अगर वह चेक बाउंस है। उसे दो साल की जेल या चेक में भरी रकम का दोगुना जुर्माना या दोनों सजा मिल सकती है। हालाँकि, बैंक चेक को डिसऑनर कर देता है जब चेक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्त पैसा नहीं है।
जानिये, चेक बाउंस होने पर कब आती है मुकदमे की नौबत
यह भी नहीं है कि चेक डिसऑनर होते ही भुगतानकर्ता पर मुकदमा चला दिया जाता है, यानी चेक बोनस दंड। चेक बाउंस होने पर लेनदार को बैंक से पहले रसीद दी जाती है, जिसमें बाउंस होने का कारण बताया जाता है। इसके बाद, लेनदार को देनदार को 30 दिनों के अंदर नोटिस देना होगा। यदि देनदार नोटिस के 15 दिनों के अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, तो चेक लेने वाला मजिस्ट्रेट की अदालत में एक महीने के अंदर शिकायत कर सकता है।
वहीं, अगर इसके बाद भी आपको भुगतान नहीं किया जाता है, तो आप चेक देने वाले के खिलाफ केस कर सकते हैं। नेशनल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस करना एक दंडनीय अपराध है, जिसमें दो साल की सजा या फिर दोनों की सजा दी जाती है।
चेक बाउंस मामले में सजा होने पर कैसे करें अपील
चेक बाउंस का अपराध 7 वर्ष से कम की सज़ा का अपराध है, इसलिए ये जमानती अपराध है। अभियुक्त को इसके अंतर्गत चलने वाले केस में अंतिम फैसले तक जेल नहीं होगी। अभियुक्त को आखिरी फैसले तक जेल से बचने का अधिकार है।
अभियुक्त चेक बाउंस केस में सजा को रोकने की मांग कर सकता है। इसके लिए वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के तहत ट्रायल कोर्ट के सामने आवेदन कर सकता है। चेक बाउंस के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सजा को निलंबित कर दिया जाता है क्योंकि अभियुक्त को किसी भी जमानती अपराध में बेल लेने का अधिकार होता है। वहीं, अभियुक्त दोषी पाए जाने पर भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के अनुसार 30 दिनों के अंदर सेशन कोर्ट के सामने अपील कर सकता है।