ऑटो रिक्शा को क्यों बोलते है टेम्पो, किस तरह हुई शुरुआत? क्या आप जानते है
Auto रिक्शा सड़कों की जान हैं। महंगी टैक्सी और भीड़भाड़ वाली मेट्रो से छुटकारा पाने का एक बहुत अलग तरीका है। अलग-अलग प्रकार के और डिजाइन के ऑटोरिक्शे सड़कों पर दौड़ते हैं, चाहे छोटा शहर हो या बड़ा। जानिए विस्तार से
Saral Kisan : Auto रिक्शा सड़कों की जान हैं। महंगी टैक्सी और भीड़भाड़ वाली मेट्रो से छुटकारा पाने का एक बहुत अलग तरीका है। अलग-अलग प्रकार के और डिजाइन के ऑटोरिक्शे सड़कों पर दौड़ते हैं, चाहे छोटा शहर हो या बड़ा। नोएडा और दिल्ली में भी बहुत से ऑटोरिक्शे सीएनजी से चलते हैं। पीले-हरे रंग के इन उपकरणों का उपयोग मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता है। लेकिन इसके नाम बहुत अजीब हैं। क्यों ऑटोरिक्शा को टेम्पो कहा जाता है? वह बहुत बड़े दिखते हैं। क्या आप इस नाम का पता है?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक अद्भुत डिजिटल प्लेटफॉर्म हैं जहां आम लोग अपने प्रश्नों के जवाब देते हैं। कुछ सालों पहले, कोरा ने पूछा, "भारत के कुछ हिस्सों में ऑटो रिक्शा को टेम्पो क्यों बोलते हैं?"जैसा कि आप शायद जानते होंगे, टेम्पो म्यूजिक में एक महत्वपूर्ण शब्द है जिसका अर्थ है गाने की गति। पर ऑटो को इस शब्द से क्यों कहा जाता है? यह जानना बहुत रोचक होगा, तो चलिए बताते हैं।
कोरा पर जनता का क्या जवाब था?
अनुराग निमेश ने लिखा कि टेम्पो (विडाल एंड सन टेम्पो वर्क जीएमबीएच) हैंबर्ग में स्थित जर्मन गाड़ी बनाने वाली कंपनी थी। 1924 में ऑस्कर विडाल ने इस कंपनी को शुरू किया था। ये जर्मनी में मैटाडोर वैन और हैनसीट थ्री व्हीलर कार बनाने के कारण बहुत फेमस थे। हम इसे ट्रक या टेम्पो कहते हैं। 1930 और 1940 के दौरान इस कंपनी ने छोटे मिलिट्री वाहन भी बनाए।
छोटे शहरों में देखो
फेसबुक पेज इंडिया हिस्ट्री के एक पोस्ट के अनुसार, फिरोदिया ग्रुप ने 1958 में मुंबई के गोरेगांव में अपनी फैक्ट्री में ये गाड़ियां बनाने शुरू कीं, जो 1960 के दशक में काफी लोकप्रिय हुईं। आज ये कुछ छोटे-छोटे शहरों में घूमते हुए दिखते हैं। उन्हें काफी प्रदूषण करने के कारण उनका उपयोग धीरे-धीरे कम होता गया, और आज छोटे ऑटो, जो सीएनजी से भी चलते हैं.