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UP Railway : भूतिया स्टेशनों की याद दिलाता है यूपी का ये रेलवे स्टेशन, कम ही आती है ट्रेनें

देश में बहुत से ऐसे पुराने रेल्वे स्टेशन हैं जो भूतिया रेवले स्टेशनों की याद दिलाते हैं। कई रेलवे स्टेशनों पर भूतिया फिल्में तक बन चुकी हैं। ऐसा ही रेलवे स्टेशन यूपी के मुरादाबाद शहर में है। जहां पर जाने से लोगों के पैर कांपते हैं।
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UP Railway: This railway station of UP reminds of haunted stations, trains rarely come.

UP News : मुरादाबाद शहर से सिर्फ करीब नौ किलोमीटर दूर स्थित यह एक ऐसा रेलवे स्टेशन है जिसे देखकर पुरानी भूतिया फिल्मों के किसी शापित रेलवे स्टेशन की याद आती है। स्टेशन के नाम पर सिंगल लाइन, एक जर्जर टिकट खिड़की और बैठने के लिए बाबा आदम के जमाने की सीमेंट वाली कुर्सियां। इतना ही नहीं स्टेशन पर लगा एक मात्र हैंडपंप भी अमूमन सूखा रहता है और स्टेशन के लिए जाने वाला रास्ता भी बेहद खस्ताहाल हो चुका है। हम बात कर रहे हैं उपेक्षा के शिकार इज्जतनगर रेल मंडल के अधीन आने वाले गोट रेल हाल्ट के बारे में।

इस हाल्ट की खास बात यह भी है कि यह हाल्ट एनई रेलवे और नार्दन रेलवे की बार्डर लाइन भी है। गोट हाल्ट तो एनआर का है लेकिन स्टेशन पार करते ही एनईआर का कार्यक्षेत्र आ जाता है। इस हाल्ट की देखरेख का जिम्मा मुरादाबाद रेल मंडल के पास है। यह रेलवे हाल्ट करीब 11 स्टेशनों को जोड़ता है जिसमे मुरादाबाद, कटघर,सेहल, पीपलसाना, जालपुर, रौशनपुर, बच्चा, पदीया नगला, अलीगंज, गौशाला और काशीपुर है । फिलहाल यहां तीन जोड़ी ट्रेनें ही अपडाउन करती हैं, जिनसे गिनती के यात्री ही सफर करते हैं।

रेलवे हाल्ट में मौजूद टिकट खिड़की पुराने जमाने की याद भी दिलाता है जो लकड़ी और सरिया से बनी है। हाल्ट की इमारत जर्जर ज़रूर हो गई लेकिन भवन की दीवारें कभी इसके  अच्छे दिनों की याद जरूर दिलाती हैं। नियमित रख-रखाव न होने से हाल्ट भवन की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। विभाग से जुड़े लोग बताते हैं कि यह रेलवे हाल्ट वर्ष 1975 में इमरजेंसी के दौरान बनाया गया था । इस समय बड़ी संख्या में लोगों के ठहराव के कारण इस हाल्ट की स्थापना की गई थी। एक किस्सा यह भी है कि गोट में कभी अंग्रेजी शासन की एक रानी ने भी कुछ दिन निवास किया था। उसके कारण कालांतर में इस जगह हाल्ट बनाने की बात हुई थी।

गिनती की ट्रेनें, गिने-चुने यात्री और एक लाख के टिकट

गोट रेलवे हाल्ट से कुल तीन पैसेंजर ट्रेनें ही अपडाउन करती हैं। इनसे यात्रा करने वाले यात्री भी गिनती के ही हैं। यात्रियों के लिए टिकट खिड़की दिन में दो बार खुलती है । जानकार बताते है कि यहां महीने में करीब एक लाख रुपये के टिकट की बिक्री होती है, इसके बाद भी रेलवे हाल्ट की अपेक्षित देखरेख नहीं की जाती। लोग बारिश में कच्ची सड़क से होकर यहां पहुँचने को मजबूर होते है तो वहीं गर्मी और ठंड में बचने के लिए तीन शेड तक टूट चुका है ।

छह साल पुराना बोर्ड बताता है ट्रेनों का किराया

रेलवे के लिए यह हाल्ट कितना उपेक्षित है, इसकी एक और बानगी की बात करें तो यह टिकट खिड़की के पास लगे बोर्ड हैं। 2017 में लगे बोर्ड में यहां से गुजरने वाली तीन पैसेंजर ट्रेनों का जिक्र है।  इसके साथ ही एक अन्य बोर्ड पर आसपास के स्टेशनों  का किराया लिखा है। हालांकि यहां से रामनगर के लिए दो और काशीपुर के लिए एक पैसेंजर ट्रेन गुजरती है, लेकिन बोर्ड पर कई ट्रेनों का किराया अंकित है। बोर्ड पर लखनऊ, बरेली, देहरादून तक का किराया तक दर्ज है लेकिन ऐसा क्यों है, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। यह किराया अब भी न्यूनतम 10 रुपये से अधिकतम 80 रुपये तक अंकित है जबकि किराये में कई बार बदलाव हो चुका है।

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