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Unique Temple : देश का एक ऐसा मंदिर जहां दिन में दो बार डूबता है सूरज

Ajab Gajab : हमारे देश में वैसे तो बहुत सारे अनोखे मंदिर है पर आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो दिन में दो बार समुन्दर में डूब जाता है और फिर से बाहर आ जाता है, आइये जानते हैं इसके बारे में  
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Unique Temple: A temple in the country where the sun sets twice a day

New Delhi :  भारत में कई प्राचीन शिव मंदिर हैं जिनसे जुड़ी कई मान्यताएं हैं। इन्हीं मंदिरों की श्रेणी में गुजरात का एक अनोखा शिव मंदिर है। यह मंदिर गुजरात के सोमनाथ मंदिर के पास है। कहते हैं कि यह अनोखा शिव मंदिर दिन में दो बार आंखों के सामने से ओझल हो जाता है। मान्यता ये भी है कि समुद्र के पास स्थित शिव मंदिर का जलाभिषेक खुद से होता है। मंदिर का नाम स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है।

गुजरात के प्राचीनतम मंदिरों में से एक स्तंभेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 7वीं सदी के पास हुआ था। इसे चावडी संतों ने बनाया था। बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण श्री शंकराचार्य ने कराया। इस मंदिर में भगवान महादेव की मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है। मंदिर के पास त्रिलोचन गढ़ किला है, जिसका निर्माण सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को सुरक्षित रखने के लिए कराया गया था। यह फोर्ट गुजरात के सौराष्ट्र का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।

कहां स्थित है स्तंभेश्वर महादेव मंदिर

भारत के सबसे अनोखे मंदिरों में से एक स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवि कंबोई गांव में स्थित है। प्राचीन सोमनाथ मंदिर से यह करीब 15 किमी की दूरी पर है। ऐसे में अगर आप सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए जा रहे हैं तो स्तंभेश्वर महादेव मंदिर भी जा सकते हैं।

कैसे पहुंचे स्तंभेश्वर महादेव मंदिर

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने के लिए यात्री द्वारका, पोरबंदर और दिवे जैसे बड़े शहरों तक ट्रेन या फ्लाइट से पहुंच सकते हैं। यहां से स्तंभेश्वर महादेव के लिए परिवहन सुविधाएं मिल जाएंगी। अहमदाबाद या वडोदरा से भी स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा के लिए बस या ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं। सबसे पहले सोमनाथ पहुंचे, जहां से स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के लिए बस या ऑटो रिक्शा आसानी से मिलती है। मंदिर के पास पार्किंग की सुविधा भी है। ऐसे में निजी वाहन से भी जा सकते हैं।

मंदिर से जुड़ी मान्यता

शिवपुराण के मुताबिक, ताड़कासुर नाम के असुर की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि शिव पुत्र के अलावा उसे कोई मार नहीं सकेगा। पुत्र की आयु 6 दिन की होनी चाहिए। वरदान मिलने के बाद तारकासुर का आतंक बढ़ गया। तारकासुर का वध करने के लिए श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय का जन्म हुआ। उन्होंने असुर का वध कर दिया लेकिन भक्त की मृत्यु से भगवान शिव दुखी हो गए। इस पर कार्तिकेय ने प्रायश्चित करने के उद्देश्य से जिस स्थान पर असुर का वध किया था वहां शिवलिंग की स्थापना की। इस स्थान का नाम स्तंभेश्वर महादेव मंदिर पड़ा।

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर समुद्र में क्यों डूब जाता है

यह मंदिर अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा हुआ है। समुद्र के किनारे पर दो बार ज्वार भाटा आता है। इस दौरान पानी मंदिर के अंदर आकर शिवलिंग का अभिषेक करके लौट जाता है। मंदिर के समुद्र में समा जाने के पीछे भी यही कारण है। मान्यता ये भी है कि यह अनोखा शिव मंदिर सुबह और शाम पलभर के लिए आंखों के सामने से ओझल हो जाता है।

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