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इस महिला का हुनर बना मिसाल, इनकी बनाई मूर्तियो व बर्तनों की आज हैं विदेशों में भारी डिमांड

राजस्थान की एक बेटी की कहानी, जो ना तो उम्र के सामने अपने हुनर से समझौता किया और ना ही हालात से, किसी ने कहा था कि हुनर होने पर उम्र और हालात मायने नहीं रखते। सुजानगढ़ की आधी आबादी आज पंकजा की कहानी और संघर्षों से प्रेरित है।

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The skill of this woman became an example, the idols and utensils made by her are in huge demand in foreign countries today.

Saral Kisan : राजस्थान की एक बेटी की कहानी, जो ना तो उम्र के सामने अपने हुनर से समझौता किया और ना ही हालात से, किसी ने कहा था कि हुनर होने पर उम्र और हालात मायने नहीं रखते। सुजानगढ़ की आधी आबादी आज पंकजा की कहानी और संघर्षों से प्रेरित है।

वह सिर्फ 30 वर्ष की उम्र में मिट्टी को आकार देने वाली पंकजा से खिलौने बनाती थी, लेकिन आज उसी पंकजा की बनाई मूर्तियां देश और विदेश में उनकी शान बढ़ा रही हैं। पंकजा बताती है कि वह बचपन में हाथी, घोड़े, मोर, चिड़िया, कबूतर, देवी और देवताओं की मूर्तियां बनाती थी। पंकजा, जो स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानती है, कहती है कि जब जागे तभी सवेरा होता है, तो अच्छे काम करने के लिए किसी अच्छे दिन और अच्छे मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती; बिना समय गवाएं आप उसे तुरंत शुरू करें।

पंकजा आज टेराकोटा, मिट्टी, फाइबर, पीओपी रेजिन और सीमेंट से मूर्तियां बनाती है, साथ ही चित्रकारी भी करती है। पंकजा केनवास पर जल, एक्रेलिक और तेल रंगों का इस्तेमाल करती है

शादी के 15 साल बाद फिर से अपनी प्रतिभा

दस साल आयु में  पंकजा ने स्वामी विवेकानंद की मूर्ति बनाई, जिन्हें वह अपना आदर्श मानती है। पंकजा बताती है कि खेतड़ी में 10 वीं तक कोई ट्रेनिंग नहीं ली, 12 वीं तक पढ़ाई में रुचि थी और कॉलेज से बीए किया। पंकजा बताती है कि वर्ष 2000 में महज 18 साल की उम्र में शादी कर चुकी थीं, लेकिन मन का कलाकार हमेशा जीवित रहा और शादी के 15 साल बाद फिर से मिट्टी और पीओपी से मूर्ति बनाने लगी.

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