home page

थाईलैंड का यह फल पहुंचा बिहार, किसान कमा रहे लाखों में फायदा

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र इस सप्ताह लौंगन के फलों को बेचेगा। लौंगन का पौधा लगाने के लिए भी किसानों को लगातार प्रेरित किया जाता है। लौंगन थाईलैंड और वियतनाम में लोकप्रिय फल है, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. विकास दास बताते हैं। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने इस अध्ययन को प्रायोजित किया है। बंगाल के चौबीस परगना से इसके खेत की मांग की गई।
 | 
This fruit from Thailand reached Bihar, farmers are earning profit in lakhs

Saral Kisan : बिहार का मुजफ्फरपुर विश्व भर में अपनी सुंदर शाही लीची के लिए प्रसिद्ध है। लीची का मौसम फिलहाल खत्म हो गया है। हालाँकि, इसी प्रजाति का स्वाददार फल लौंगन का भी मौसम आ गया है। लौंगन पक चुका है। जल्द ही आम लोग भी इसे खरीद सकेंगे। मुशहरी के राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में लौंगन के पौधे का उपयोग किया गया। अब यहां बड़े पैमाने पर लौंगन बनाया जाता है।

थाईलैंड और वियतनाम में लोकप्रिय फल

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र इस सप्ताह लौंगन के फलों को बेचेगा। लौंगन का पौधा लगाने के लिए भी किसानों को लगातार प्रेरित किया जाता है। लौंगन थाईलैंड और वियतनाम में लोकप्रिय फल है, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. विकास दास बताते हैं। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने इस अध्ययन को प्रायोजित किया है। बंगाल के चौबीस परगना से इसके खेत की मांग की गई।

इस राज्य में पपीता की खेती पर 45 हजार रुपये देने के लिए आवेदन करें

लौंगन का पौधा लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह सप्ताह आपको खाने के लिए जो फल लगे हैं, मिल जाएगा। दरअसल, अप्रैल में लौंगन के पेड़ में फूल लगते हैं। फल जुलाई के अंत तक पककर तैयार हो जाते हैं। यह भी अगस्त के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाएगा।

इस फल में कीड़े नहीं होते

लौंगन लीची की तरह होता है। यह लीची कुल (खानदान) का फल है। इसके पत्ते लीची की तरह हैं। पेड़ भी ऐसा ही है, लेकिन लीची की तरह अंडाकार और लाल नहीं है। लीची की तरह कीड़े नहीं लगते, जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। लीची का सीजन खत्म होने के एक महीने बाद तक यह उपलब्ध है।

बहुत से रोग-प्रतिरोधक पदार्थ पाए जाते हैं

केंद्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसमें एंटी पेन और एंटी कैंसर घटक हैं। इसमें एस्कार्बिक एसिड, फाइबर, प्रोटीन, रेटिनाल, कार्बोहाइड्रेट, कैरोटीन और विटामिन-के शामिल हैं। ये तत्व शरीर की कई आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

जैविक स्वीटनर

मुजफ्फरपुर के लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि लौंगन लीची के परिवार का ही फल है। लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर में ही इसकी खेती शुरू की गई थी, और सभी पेड़ अच्छी फल दे रहे हैं। एक पेड़ लगभग एक क्विंटल उपज देगा। लौंगन की फल अभी भी वृद्धि होगी, हालांकि यह अभी काफी छोटा है। 20 अगस्त से इसकी तुड़ाई की जाएगी। लौंगन के फल बहुत मिठास हैं। यह नेचुरल स्वीटनर भी है। लौंगन के बीज, गुदे और पल्प में बहुत सारे औषधीय गुण हैं। इसका उपयोग कई तरह की औषधि बनाने में भी किया जा सकता है।

लौंगन की खेती कब की जानी चाहिए?

डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि लौंगन की खेती करने वाले किसानों को लीची की तरह ही गड्ढे करने होंगे। गड्ढा मई-जून में तैयार किया जाता है और जुलाई में रोपा जाता है। इसके लिए मुजफ्फरपुर लीची अनुसंधान केंद्र में पौधे मिल जाएंगे। 1 साल पुराने पौधे से खेती शुरू कर सकते हैं।

ये पढ़े : उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर, बरेली और बदायूं को मिली करोड़ों की सौगात, नए प्रोजेक्ट्स कि हुई शुरुआत

Latest News

Featured

You May Like