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रेलवे स्‍टेशन पर लिखे रोड शब्‍द में छुपा हैं बड़ा राज, हर रेल यात्री जरूर जान लें

Railway station : रेलवे स्‍टेशन का नाम अक्सर जंक्शन, टर्मिनल और रोड शब्दों के साथ लिखा जाता है। आप भी सोच सकते हैं कि रेलवे क्यों किसी शहर के स्टेशन के लिए इन विशिष्ट शब्दों का प्रयोग करता है।
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There is a big secret hidden in the word Road written on the railway station, every railway passenger must know it.

Railway station : रेलवे स्‍टेशन का नाम अक्सर जंक्शन, टर्मिनल और रोड शब्दों के साथ लिखा जाता है। आप भी सोच सकते हैं कि रेलवे क्यों किसी शहर के स्टेशन के लिए इन विशिष्ट शब्दों का प्रयोग करता है। दरअसल, इन शब्दों का प्रयोग यात्रियों को विशिष्ट जानकारी देने के लिए किया गया है। रेलवे स्टेशन के नाम के पीछे रोड शब्द भी कुछ बताता है। यात्रियों को इस शब्द से पता चलता है कि स्टेशन शहर के अंदर नहीं है, बल्कि शहर से बाहर कुछ दूरी पर है। 2 किलोमीटर से 100 किलोमीटर तक की दूरी हो सकती है।

यदि आप भी हजारीबाग रोड, रांची रोड या आबू रोड जैसे स्टेशनों पर उतर रहे हैं, तो आपको पहले से ही पता होना चाहिए कि इनमें से किसी भी शहर में जाने के लिए आपको स्टेशन से उतरकर वहां से कोई और वाहन लेकर सड़क मार्ग से जाना होगा। रेलगाड़ी आपको शहर से बाहर ले जाएगा। भारतीय रेल के प्रधान मुख्य प्रशासनिक अधिकारी अनिमेष कुमार सिन्हा ने कौरा पर एक सवाल के जवाब में कहा, "रेलवे स्टेशन के साथ "रोड" शब्द का जुड़ा होना यह इंगित करता है कि उस स्थान पर जाने के लिए एक रोड जाती है और उस शहर को जानेवाले रेल यात्री वहीं उतरें।"

कितनी दूरी हो सकती है?

रोड नामक रेलवे स्टेशन से शहर की दूरी दो से तीन किलोमीटर से लेकर सौ किलोमीटर तक हो सकती है। रेलवे स्टेशन कोडाईकनाल से 79 किलोमीटर दूर है, जबकि वसई रोड स्टेशन से वसई 2 किलोमीटर दूर है। यही कारण है कि हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन 66 किलोमीटर दूर है। रांची रोड रेलवे स्टेशन से रांची शहर 49 किमीटर दूर है, जबकि आबू रोड रेलवे स्टेशन से आबू 27 किमीटर दूर है। हालाँकि, आज बहुत से ऐसे रेलवे स्टेशनों के आसपास काफी लोग रहते हैं। लेकिन जब ये रेलवे स्टेशन बन गए, वहां कोई नहीं रहता था।

शहर में रेलवे स्टेशन क्यों नहीं बनाए गए?

रेलवे लाइन को कई शहरों तक बिछाने में कोई बड़ी बाधा आने पर ही इन शहरों से दूर स्टेशन बनाए गए। रेलवे लाइन को माउंट आबू पहाड़ पर बिछाना बहुत खर्चीला था, इसलिए आबू से 27 किलोमीटर दूर पहाड़ से नीचे स्टेशन बनाया गया।

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