home page

बिना फेरों वाली शादी पर Supreme Court का दिया बड़ा स्टेटमेंट, जानिए हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक फैसले में ये साफ कर दिया है कि वर वधु एक दूसरे को पति पत्नी स्वीकार करने की घोषणा किसी भी भाषा में किसी भी प्रथा, रस्म या  अभिव्यक्ति के जरिए करें तो वो सामाजिक और कानूनी तौर पर मान्य है. आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.
 | 
Supreme Court gave a big statement on marriage without marriage, know what it said while overturning the decision of the High Court

Saral Kisan : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस बाबत अपने फैसले में मद्रास हाईकोर्ट का 5 मई को दिए गया वो फैसला भी पलट दिया जिसमें वकीलों के चेंबर में हुए विवाह को अवैध बताया गया था क्योंकि वहां पुरोहित नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने अपने फैसले में तमिलनाडु में 1967 से प्रचलित स्वाभिमान विवाह कानून पर भी अपनी मान्यता की मुहर लगा दी.

पीठ ने कहा कि ये कानून उन जोड़ों की मदद कर सकता है जो सामाजिक विरोध या खतरे की वजह से अपने विवाह को गोपनीय रखना चाहते हैं. शादी विवाह के लिए समारोह  होना, तय विधि पूरी करना या फिर विवाह की सार्वजनिक घोषणा किया जाना आवश्यक नहीं है.

एक दूसरे को माला पहनाकर, अंगूठी पहनाकर, ताली बांधकर या फिर तय  विधि पूरी कर विवाह की घोषणा या किसी की साक्षी में एक दूसरे को पति पत्नी स्वीकार किए जाने की हामी भर सकते हैं.  

मद्रास हाईकोर्ट ने इन याचिकाकर्ताओं के विवाह को यह कहते हुए मान्यता नहीं दी थी कि वकीलों के समक्ष किया विवाह तब तक वैध नहीं माना जाएगा जब तक   तमिलनाडु विवाह पंजीयन कानून 2009 के तहत उसे पंजीकृत न कराया जाए. विवाह पंजीयक के समक्ष वर वधु की निजी तौर पर यानी प्रत्यक्ष उपस्थिति हाईकोर्ट ने आवश्यक बताई थी.

तमिलनाडु सरकार ने 1925 में समाज सुधारक पेरियार के आत्म सम्मान आंदोलन से प्रेरित होकर 1967 में मुख्य मंत्री सी एन अन्नादुरई विधान सभा में स्वाभिमान मैरिज कानून का मसौदा लेकर आए. उसी साल ये कानून बना जिसमे विवाह के लिए पुरोहित की आवश्यकता हटा दी गई थी.

ये पढ़ें : उत्तर प्रदेश के इन 24 गांवों की जमीन खरीदने बेचने पर रोक, बसेगा नया शहर

Latest News

Featured

You May Like