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सालों पुराने तालाब की अजीब है कहानी, कभी निकलते थे सोने चांदी के बर्तन

सरसई गांव, वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर से 15 किलोमीटर दूर, बर्तन उगलने वाले तालाब के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि इस गांव में स्थित सरसई पोखर की कहानी बिलकुल ऐसी है। जो आप भी हैरान हो जाएगा। दरअसल, सरसई सरोवर नामक एक पोखर इस गांव के बीचोबीच है।
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The old pond has a strange story, once upon a time gold and silver utensils used to come out of it.

Saral Kisan : सरसई गांव, वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर से 15 किलोमीटर दूर, बर्तन उगलने वाले तालाब के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि इस गांव में स्थित सरसई पोखर की कहानी बिलकुल ऐसी है। जो आप भी हैरान हो जाएगा। दरअसल, सरसई सरोवर नामक एक पोखर इस गांव के बीचोबीच है। ज्ञात होता है कि तिरहुत के राजा विशाल ने 1402 से 1405 के बीच इस तालाब को जनहित में बनाया था।

52 बीघा में तालाब बनाया गया था

यह भी बताया जाता है कि 52 बीघा जमीन पर यह तालाब बनाया गया था। इसके चारों ओर फलदार पेड़ थे। लेकिन अतिक्रमण के कारण इस सरोवर का आकार अब बहुत छोटा हो गया है और पोखर के किनारे पेड़ भी नहीं हैं। बाद में इस पोखर को सरसई सरोवर नाम दिया गया। ग्रामीणों का कहना है कि इस तालाब में कमल का फूल भी बहुत खिलता था। जो लोग दूर-दूर से लाते थे।

समुद्र से निकलता था खाने का बर्तन

सरोवर से जुड़ी एक कहानी इसे और भी विशिष्ट बनाती है। माना जाता था कि तालाब के किनारे खड़े होकर किसी ने खाने के लिए बर्तन मांगने पर सोने, चांदी और अन्य धातुओं से बने बर्तन मिलते थे। जो लोग इस्तेमाल करके फिर से सरोवर में फेंक देते थे। लेकिन एक बार बर्तन तालाब में वापस नहीं छोड़ा गया। बर्तन उगलने की प्रक्रिया इसके बाद बंद हो गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि सरोवर ऐतिहासिक है। आज यह उपेक्षा का शिकार है। कुछ लोग अतिक्रमण भी कर रहे हैं। सरोवर को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। सरकार से आसपास के लोग सरोवर की मरम्मत और सुंदरीकरण की मांग कर रहे हैं।

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