कूड़े से होती है देश को लाखों करोड़ों रुपए की इनकम, जानिए पूरा गणित
Saral Kisan : आज देश में पश्चिमी रिसाइकलिंग एक अरबों डॉलर की व्यवसाय है। देश भर में विविध पश्चिमी उद्योगों का उदय हुआ है। जैसे, पीसीबी से मेटल निकालने का कार्य मुरादाबाद में होता है, लेकिन पीईटी से यार्न बनाने का कार्य पानीपत में हब बन गया है। प्लास्टिक भी सड़कों और कंस्ट्रक्शन मटीरियल बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। नारियल की भूसी, बाल और खराब टायर भी कमाई करते हैं।
उत्तरी इकनॉमिक्स
अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक डेवाइसेज का दिल पीसी है। लेकिन डेवाइस खराब होने पर भी इसका फायदा रहता है। इसमें मेटल लगा है। दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर दूर मुरादाबाद में बेकार हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से एक अर्थव्यवस्था चल रही है। यह स्थान है जहां गोल्ड और अन्य मेटल्स निकाले जाते हैं। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में पश्चिमी पीसीबी से 1.5 अरब डॉलर का सोना निकाला जा सकता है। अभी देश का लगभग 20 % ई-वेस्ट फॉर्मल सेक्टर में होता है। असंगठित क्षेत्र बाकी काम करता है।
लाखों लोगों को लाभ मिलेगा
लेकिन मेटल को इनफॉर्मल क्षेत्र में निकालने के तरीके प्रकृति और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं। इसमें एसिड से मेटल निकालना और केबल को जलाकर निकालना शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एक डिवाइस में चौबीस मेटल हैं। भारत इनमें से आठ मेटल पूरी तरह आयात करता है। भारत इन मेटल्स को निकालकर घरेलू मांग को पूरा कर सकता है। ई-वेस्ट संकलन और रिसाइकलिंग के लिए फॉर्मल प्रणाली बनाने से इस क्षेत्र में काम करने वाले लाखों लोगों को फायदा होगा।
ई-वेस्ट बाजार
रिपोर्ट के अनुसार, केवल दिल्ली में कम से कम 15 स्थानों पर 3,400 से अधिक कंपनियां काम करती हैं। 1.5 लाख कर्मचारी इनमें काम करते हैं, जो प्रतिदिन 500 से 1000 रुपये कमाते हैं। मुरादाबाद देश में जितने भी वेस्ट पीसीबी निकलते हैं, उनमें लगभग 50 प्रतिशत हैंडल करता है, एक अनुमान है। भारत से प्रति वर्ष 16 लाख टन ई-वेस्ट निकलता है। ई-वेस्ट और बैटरी रिसाइकलिंग क्षेत्र 2030 तक 9.5 अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है।
कचरे से पैसा
2021 में आई मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सूखे कचरे की रिसाइकलिंग से सालाना 11,836 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। गीले कचरे से बायो-सीएनजी और कंपोस्ट बनाकर सालाना 2,000 करोड़ रुपये की कमाई हो सकती है। यही कारण है कि वेस्ट कंस्ट्रक्शन और डेमोलिशन से हर साल 416 करोड़ रुपये, ट्रीटेड स्लज से 6,570 करोड़ रुपये और वेस्टवॉटर से 3,285 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। इसके लिए कचरा अलग-अलग करना और उसे प्रक्रिया करना आवश्यक है।
बाल, टायर और नारियल
उदाहरण के लिए, भारत विश्व का 30 प्रतिशत नारियल उत्पादाता है। भारत भी इसका बड़ा ग्राहक है। देश में अभी बड़े पैमाने पर नारियल फाइबर या भूसे की रिसाइकलिंग नहीं हो रही है। इसे फ्यूल, गार्डनिंग या कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार सेग्रीगेशन, ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्स छोटे और दूरदराज के शहरों में रिसाइकलिंग में सबसे बड़ी बाधाएं हैं। इसके बाद भी संज्ञानात्मक प्रबंधन सीमित है। बड़े मंदिरों तक ही कलेक्शन प्रणाली सीमित है। इसमें ब्यूटी पार्लर्स और सैलून शामिल नहीं हैं। रबर टायर भी ऐसा ही है। भारत में हर साल 2.75 लाख बेकार टायर होते हैं। लेकिन इनके डिस्पोजल को देखने के लिए कोई प्रणाली नहीं है।
पीटी
कपड़े पीईटी (प्लास्टिक बोतल) से बनाए जा रहे हैं। इससे कंज्यूमर और पर्यावरण दोनों को लाभ हो रहा है। अप्ला - - ''कर प ' प प ' प प प- प- प इसका उपयोग कुशन और पिलो फिलिंग मटीरियल में होता है। इससे कपड़ा भी बनाया जाता है। कपड़े बनाने में रिसाइकल्ड पीईटी का उपयोग किया जाता है। भारत की क्रिकेट टीम भी इस तरह के कपड़े पहने हुए है। इससे यार्न बनाने में कम रिसोर्स लगते हैं और कार्बन फुटप्रिंट कम निकलता है, जो दोनों फायदे हैं।
पीईटी क्षेत्र
पीईटी रिसाइकलिंग की प्रक्रिया और यार्न की गुणवत्ता को लेकर कुछ चिंताएं हैं, लेकिन उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। यह भी पंजाब के लुधियाना और गुजरात के कई शहरों में व्यापक हो गया है। 10 लाख टन पीईटी वेस्ट हर साल देश से बाहर निकलता है। 90 प्रतिशत इसका उत्पादन होता है। 2028 तक देश का पीईटी रिसाइकलिंग क्षेत्र 1.7 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
प्लास्टिक की सड़कें
भारत में प्लास्टिक का व्यापक उत्पादन होता है। लेकिन इसके बावजूद प्लास्टिक कूड़ेघर में प्रवेश करता है। सड़क बनाने में इसका उपयोग करना इसका एक समाधान है। यह कंस्ट्रक्शन मटीरियल भी बना सकता है। 2021 में प्लास्टिक से 700 किमी का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया था। 2002 में चेन्नई में सड़क बनाने में इसका पहला उपयोग हुआ था। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में तब से 13,000 किमी से अधिक सड़कें प्लास्टिक से बनाई गई हैं। शुरुआती संकेत उत्साहजनक हैं, हालांकि इससे जहरीले पदार्थों के फैलने और पर्यावरण को होने वाले नुकसान की जांच की जा रही है।
प्लास्टिक का बाजार
प्लास्टिक सड़कों में आम सड़कों की तरह गड्ढे नहीं होते, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का कहना है। बिभाग हर साल देश से 90 लाख टन प्लास्टिक निकलता है। 60 प्रतिशत पश्चिम का उत्पादन होता है। प्लास्टिक वेस्ट रिसाइकलिंग मार्केट 2030 तक 10.2 अरब डॉलर का होने का अनुमान है।
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