Supreme Court ने दिया फैसला, पिता को यह संपत्ति बेचने से नहीं रोक सकता बेटा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि परिवार का मुखिया पैतृक संपत्ति बेचता है, तो पुत्र या अन्य हिस्सेदार उसे कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते क्योंकि यदि वह यह पारिवारिक कर्ज चुकाने या अन्य कानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हुआ है।
Saral Kisan - सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि परिवार का मुखिया पैतृक संपत्ति बेचता है, तो पुत्र या अन्य हिस्सेदार उसे कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते क्योंकि यदि वह यह पारिवारिक कर्ज चुकाने या अन्य कानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हुआ है। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चौबीस साल पहले दायर एक मुकदमे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एक बार यह सिद्ध हो गया कि पिता ने अपनी संपत्ति को कानूनी आवश्यकता के लिए बेचा है, तो हिस्सेदार इसे अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। 1964 में पुत्र ने पिता के खिलाफ यह मामला दायर किया था। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने तक पिता और पुत्र जीवित नहीं रहे, लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने मामले को चलाया।
जस्टिस एम.एम. सप्रे और एस.के. कौल की पीठ ने निर्णय दिया कि हिंदू कानून के अनुच्छेद 254 में पिता की संपत्ति बेचने का प्रावधान है। प्रीतम सिंह के परिवार को इस मामले में खेती की जमीन को सुधारने के लिए धन की भी आवश्यकता थी, साथ ही उन्हें दो कर्ज भी थे। पीठ ने कहा कि प्रीतम सिंह के परिवार का कर्ता था, इसलिए उसे कर्ज चुकाने के लिए अपनी संपत्ति बेचने का पूरा अधिकार था।
कर्ता, अनुच्छेद 254(2) के तहत चल या अचल संपत्ति, रेहन या पुत्र-पौत्र के हिस्से को कर्ज चुकाने के लिए बेच सकता है। लेकिन यह कर्ज किसी अनैतिक या अवैध तरीके से नहीं पैदा हुआ होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक व्यवसाय या अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए कानूनी आवश्यकताएं लागू होती हैं। इस मामले में, 1962 में प्रीतम सिंह ने लुधियाना तहसील में अपनी 164 कैनाल जमीन 19,500 रुपये में दो व्यक्तियों को बेच दी थी। उनके पुत्र केहर सिंह ने इस निर्णय को अदालत में चुनौती दी और कहा कि पिता पैतृक संपत्ति को नहीं बेच सकते क्योंकि वह उसके हिस्सेदार हैं। पिता जमीन बेचने के लिए उनकी अनुमति की जरूरत है। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने पुत्र के पक्ष में निर्णय दिया और बिक्री रद्द कर दी।
जब मामला अपील अदालत में पहुंचा, तो उसने पाया कि जमीन कर्ज चुकाने के लिए बेची गई थी। फैसला अपील कोर्ट ने पलट दिया। 2006 में, मामला हाईकोर्ट चला गया और यहां यह फैसला बरकरार रखा गया। इस मामले में भी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यही निर्णय दिया और कहा कि कर्ता कानूनी आवश्यकतानुसार संपत्ति बेच सकता है।
पैतृक संपत्ति बेची जा सकती है -
पैतकृ कर्ज चुकाने के लिए, संपत्ति पर सरकारी देनदारी के लिए, परिवार के हिस्सेदारों और उनके परिवारों के सदस्यों की देखभाल के लिए, पुत्रों के विवाह और उनकी पुत्रियों के विवाह के लिए, परिवार के समारोह या अंतिम संस्कार के लिए, संपत्ति पर चल रहे मुकदमे के खर्च के लिए, संयुक्त परिवार के मुखिया के खिलाफ गंभीर आपराधिक मुकदमे में उसके बचाव के लिए