SC News : बिना कोर्ट जाए ऐसे छुड़वा सकते हैं कब्ज़े वाली ज़मीन, कोर्ट ने खुद बताया तरीका
Saral Kisan : किसी के किराए की दुकान या फिर मकान पर या किसी के प्लॉट पर कब्जा करना आजकल एक आम बात हो गई है. अगर ऐसा हो गया है तो फिर इसे खाली कराना एक बड़ा सिरदर्द हो जाता है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि पहले तो लोग किराए पर दुकान या मकान लेते हैं फिर उस पर कब्जा कर लेते हैं. अगर आपके साथ भी ऐसा हुआ है तो फिर ये जानना बहुत जरूरी है कि इन हालातों में आप क्या कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे ही केस में महत्वपूर्ण फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में साफ था कि इन हालातों में कोई भी बिना कोर्ट जाए अपनी जमीन खाली करा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के एक केस के सिलसिले में यह आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे की प्रॉपर्टी पर जबरन कब्जा नहीं कर सकता है. अगर ऐसा हुआ है तो फिर पीड़ित को यह अधिकार है कि वो बलपूर्वक कब्जे को खाली करा ले. इसके लिए ये जरूरी है कि पीड़ित उस प्रॉपर्टी का मालिक हो और वो प्रॉपर्टी उसके नाम हो।
कब्जा खाली कराने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि अगर आपके पास प्रॉपर्टी का टाइटल है, तो आप 12 साल बाद भी बलपूर्वक अपनी प्रॉपर्टी से कब्जा खाली करा सकते हैं. इसके लिए कोर्ट में केस दायर करने की जरूरत नहीं है. अगर प्रॉपर्टी का टाइटल आपके पास नहीं और कब्जा किए हुए 12 साल हो गए हैं तो आपको कोर्ट में केस करना होगा. ऐसे मामलों की कानूनी कार्यवाही के लिए स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट 1963 (Specific Relief Act 1963) बनाया गया. प्रॉपर्टी से गैर कानूनी कब्जा खाली कराने के लिए स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट की धारा 5 के तहत प्रावधान किया गया है।
हालांकि प्रॉपर्टी विवाद में सबसे पहले स्टे लेना ठीक रहता है ताकि कब्जा करने वाला व्यक्ति उस प्रॉपर्टी पर निर्माण न करा सके और न ही उसको बेच सके. स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट की धारा 5 के मुताबिक अगर कोई प्रॉपर्टी आपके नाम है यानी उस प्रॉपर्टी का टाइटल आपके पास है. किसी ने उस प्रॉपर्टी पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा कर लिया है, तो उसे खाली कराने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत मुकदमा दायर करना होता है।
किस केस में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला
पूना राम राजस्थान के बाड़मेर का रहने वाला है. उसने साल 1966 में एक जागीरदार से जमीन खरीदी थी, जो एक जगह नहीं थी, बल्कि अलग-अलग कई जगह थी. जब उस जमीन पर मालिकाना हक की बात आई, तो यह सामने आया कि उस जमीन पर मोती राम नाम के एक शख्स का कब्जा है. हालांकि मोती राम के पास जमीन के कोई कानूनी दस्तावेज नहीं थे. इसके बाद पूना राम ने जमीन पर कब्जा पाने के लिए कोर्ट में केस किया. मामले में ट्रायल कोर्ट ने पूना राम के पक्ष में फैसला सुनाया और मोती राम को कब्जा खाली करने का आदेश दिया. इसके बाद राजस्थान हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी पूना राम के पक्ष में फैसला सुनाया था।
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