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राजस्थान में डेंगू और स्क्रब टाइप्स को लेकर चिकित्सा विभाग अलर्ट, राजधानी जयपुर में सर्वाधिक मामले

Rajasthan News :एसएमएस अस्पताल के मेडिसिन के डॉ. पुनीत सक्सेना का कहना है कि डेंगू की तरह इस बीमारी में भी प्लेटलेट्स गिरते हैं। स्क्रब टाइफस एक बैक्टीरियल या रिकेट्सियल बीमारी है जो सुसुगेमोसी बैक्टीरिया से होती है।

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राजस्थान में डेंगू और स्क्रब टाइप्स को लेकर चिकित्सा विभाग अलर्ट, राजधानी जयपुर में सर्वाधिक मामले

SEASONAL DISEASES : एसएमएस अस्पताल के मेडिसिन के डॉ. पुनीत सक्सेना का कहना है कि डेंगू की तरह इस बीमारी में भी प्लेटलेट्स गिरते हैं। स्क्रब टाइफस एक बैक्टीरियल या रिकेट्सियल बीमारी है जो सुसुगेमोसी बैक्टीरिया से होती है। इससे सिर दर्द, ठंड लगने के साथ तेज बुखार, निमोनिया, प्लेटलेट्स कम होना और माइट के काटने वाली जगह पर काला निशान पड़ जाता है। 

गंभीर मामलों में ऑर्गन फेलियर से मौत भी हो सकती है। काटने के 10 दिन बाद शरीर पर पिस्सू के निशान दिखाई देते हैं। अगर किसी व्यक्ति को यह काटता है तो उसे ठंड लगने के साथ बुखार भी महसूस होगा। सिर दर्द, बदन दर्द और मांसपेशियों में दर्द की शिकायत भी हो सकती है। बारिश के मौसम में हाथ-पैर ढक कर रखें। खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को ध्यान रखना होगा। बीमारी से बचने के लिए आसपास की घास और झाड़ियों से दूर रहने की सलाह दी जाती है।

मौसम में बदलाव के साथ ही राज्य में डेंगू और स्क्रब टाइफस के मामले बढ़ने लगे हैं।  राज्य में अब तक माइट या पिस्सू के काटने से स्क्रब टाइफस के 481 मामले सामने आ चुके हैं। अकेले जयपुर में स्क्रब टाइफस के 80 पॉजिटिव मामले सामने आए हैं। उदयपुर में 113 और कोटा में 46 मामले सामने आए हैं। लगातार मामले बढ़ने से चिकित्सा और पशुपालन विभाग की ओर से बीमारी की रोकथाम के लिए किए गए इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। 

स्वास्थ्य विभाग के निदेशक (जन स्वास्थ्य) डॉ. रवि प्रकाश माथुर ने सभी जिलों के सीएमएचओ को पहले ही अलर्ट कर दिया है। केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान समेत अन्य राज्यों को बीमारी को लेकर अलर्ट जारी किया है।

किसकी क्या जिम्मेदारी

चिकित्सा विभाग: रैपिड रिस्पांस टीम को मजबूत करना, पॉजिटिव पाए जाने पर घर-घर सर्वे करना, चिकित्सा संस्थानों में स्क्रब टाइफस बुखार की निशुल्क दवा उपलब्ध कराना। राज्य के मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में एलाइजा जांच की सुविधा।  जिलों में 24 घंटे, 7 दिन नियंत्रण कक्ष बनाना।

पशुपालन विभाग: संक्रमित क्षेत्रों और पशुओं पर एक प्रतिशत साइपरमेथ्रिन या फ्लूमेथ्रिन का छिड़काव करना, यदि पॉजिटिव पाया जाता है। पशुपालकों को रोग के बारे में जानकारी देना 14 और एक्टो पैरासाइट नियंत्रण कार्यक्रम चलाना 13. त्वरित प्रतिक्रिया दल में पशु चिकित्सकों को शामिल करना।

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