बिहार के लोगों ने बसा दिया यूपी का ये गांव, 90 साल पुराना इतिहास
UP New Village : उत्तर प्रदेश के बहराइच जिला में एक ऐसा गांव है, जिसे शाहाबाद के लोगों ने बसाया है। इस गांव में इन्हीं इलाके के लोग निवास भी करते हैं। 90 साल पहले यहां न आबादी थी और गांव। चारों ओर जंगल था और यह स्थल नदी से घिरा था। लेकिन, शाहाबाद के किसी-किसी को इस बात की जानकारी है कि इस गांव को यहीं के लोगों ने बसाया है। इस गांव का नाम ‘करमोहना’ है, जो मोतीपुर थाना क्षेत्र का हिस्सा है और मेनपुरवा से 10 किमी. की दूरी पर है। इस गांव की रोचक कहानी है।
करमोहना की 95 वर्षीया जगपातो कुंवर से जब बात की गई तो उन्होंने अपने माथे पर बल देते हुए बताया कि उनके बड़े-बुजुर्ग के अनुसार करीब 90 साल पहले यहां रोहतास जिला के दावथ निवासी शिवपूजन सिंह, बालचंद सिंह, विरोधी सिंह, सुखन सिंह, माधव सिंह आए थे। किसी ने उनसे कहा था कि इस स्थल पर सिर्फ जंगल और जमीन है। कोई भी वहां जाकर खेतीबारी कर सकता है। बगल से नदी गुजरती है इसलिए यहां सिंचाई की भी दिक्कत नहीं होगी। तब दावथ में गरीबी थी और बीमारी भी फैली थी। उक्त लोग वहां गए तो चारों ओर जंगल था।
उन लोगों ने वहां लंबे-लंबे बांस में लाल कपड़े का झंडा गाड़ा, ताकि जंगल में वह भटक भी जाएं तो लाल झंडा को देखकर उन्हें राह मिले सके। पेड़ की डालियों व पत्तों से मड़ई तैयार की। खाने के लिए अनाज व बर्तन व खेती करने के लिए कुदाल, फड़ुआ लेकर गए थे। सबसे पहले सब्जी की खेती की। खूब फसलहुई। बाजार में बेचने पर अच्छे दाम मिले। खेत का रकबा बढ़ाया। गांव दावथ व आसपास के भी लोग आ गए। इनकी संख्या बढ़ी तो मन में डर भी कम हुआ। जगपातो की शादी शिवपूजन सिंह से करीब 72-75 साल पहले हुई। इनसे पहले एक और किसी व्यक्ति की शादी हुई थी।
ऐसे पड़ा करमोहना नाम
करमोहना के 77 वर्षीय हृदय नारायण व सुदामा सिंह रोहतास जिले के नासरीगंज से गए थे। नासरीगंज में अशोक गुप्ता से ब्याही शिवपूजन की बेटी शांति कुंवर ने बताया कि वहां की महिला ने सबसे पहले बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम करमोहना रखा गया। इस गांव का नाम नहीं था। इसलिए पुरनिया लोगों ने उसी बच्चे के नाम से इस गांव का भी नाम करमोहना रख दिया। आज भी इसे इसी नाम से जाना जाता है और यह नाम वहां के सरकारी दस्तावेज में भी अंकित है। पूछने पर शांति ने बताया कि जिसे जितनी इच्छा होती, उतनी जमीन में खेती करता। बाद में वह जमीन भी उनके नाम से हो गया।
अभी धान की रोपनी कर रहे किसान
दावथ मुख्य पथ निवासी गोलू ने बताया कि वह भी करमोहना में रहता है। अभी यहां धान की खेती करा रहा है। सभी किसान धान की रोपनी कराने में व्यस्त हैं। बारिश नहीं हो रही है। पूछने पर उसने बताया कि यहां सभी फसल की खेती आसानी से हो जाती है। लेकिन, बरसात में बाढ़ का संकट आ जाता है। करमोहना में अभी कई टोले बस गए हैं। यहां की आबादी एक हजार से कम नहीं होगी। गांव में अब सरकारी स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र भी है। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलता है।
बिहार से लेकर जाते हैं अनरसा, तिलकुट व छेना मिठाई
मेनपुरवा में रह रहे सुरेंद्र सिंह के बेटे विकास कुमार बताते हैं कि वह जब भी बिहार में अपने गांव जाते हैं वहां से खोवा से बने अनरसा, तिलकुट व छेना की मिठाई लेकर आते हैं। यहां के बाजार में यह चीजें नहीं मिलती हैं। करमोहना में रहनेवाले लोग इन चीजों को पसंद करते हैं। इसलिए जब भी कोई बिहार जाता है, तो वह लोग उसे पैसा देकर उक्त चीजें मंगाना नहीं भूलते हैं। बिहार की धरती से आज भी उनका लगाव उसी तरह बना है, जैसे पहले था।
घने जंगल व नदियां बहराइच की पहचान
घने जंगल और तेज बहने वाली नदियां बहराइच की पहचान हैं। कहते हैं कि यह ब्रह्मा की राजधानी, ब्रह्मांड के निर्माता के रूप में प्रसिद्ध था। यह गंधर्व वन के हिस्से के रूप में भी जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने इस वन क्षेत्र को ऋषियों और साधुओं की पूजा के स्थान के रूप में विकसित किया था। इसलिए इस स्थान को ‘ब्रह्माच’ के रूप में भी जाना गया। मध्य युग में कुछ अन्य इतिहासकारों के अनुसार, यह जगह ‘भर’ राजवंश की राजधानी थी। इसलिए इसे ‘भारिच’ भी कहा गया, जो बाद में ‘बहराइच’ के रूप में जाना जाने लगा।
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