उत्तर प्रदेश में अब अवैध कालोनी बनाने वालों की खैर नहीं, सैटेलाइट से रखी जा रही नजर
UP News : उत्तर प्रदेश में कृषि योग्य जमीन से छेड़छाड़ करना अब भारी पड़ने वाला है. प्रदेश में अब कृषि योग्य जमीन का उपयोग करके अवैध निर्माण को रोकने के लिए सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है।
Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश में कृषि योग्य जमीन से छेड़छाड़ कर अवैध निर्माण करने वालों की आदत खैर नहीं होगी। प्रदेश में इन अवैध निर्माण पर रोकथाम लगाने के लिए सेटेलाइट के जरिए निगरानी रखी जाएगी. अब प्रदेश में भू उपयोग कर अवैध निर्माण पर पीला पंजा चलाया जाएगा. मेरठ विकास प्राधिकरण ने इस निगरानी तंत्र का नाम भूनेत्र रखा है.
प्राधिकरण के क्षेत्रफल में विस्तार
प्राधिकरण का बुलडोजर देहाती इलाकों में भी कृषि योग्य भूमि पर अवैध रूप से कॉलोनी विकसित करने पर गरजने वाला है. इस महा परियोजना के माध्यम से प्राधिकरण के क्षेत्रफल में विस्तार हुआ है। अब सेटेलाइट के जरिए फोटो खींचकर सुदूर गांव पर निगरानी रखी जा रही है। उत्तर प्रदेश में मेरठ विकास प्राधिकरण ने इसकी शुरुआत कर दी है।
पहली बार उत्तर प्रदेश में होगी कार्यवाही
उत्तर प्रदेश में पहली बार अवैध निर्माण को रोकने के लिए सैटेलाइट की मदद ली जाएगी। बता दे की भू उपयोग का गलत फायदा उठाकर अवैध निर्माण रोकने के लिए अब सेटेलाइट से निगरानी रखी जाएगी। सेटेलाइट से निगरानी रखने वाले स्थान पर का नाम भूनेत्र रखा गया है. प्राधिकरण के क्षेत्रफल बढ़ जाने के बाद स्टाफ की कमी आई है. इसी के चलते सेटेलाइट की मदद से फेंसिंग तारबंदी की जा रही है. जब भी किसी भूभाग पर निर्माण में बदलाव किया जाएगा तो सैटेलाइट उस बदलाव का फोटो खींचकर प्राधिकरण को भेजेगा. इसके बाद प्राधिकरण इसका सत्यापन करेगी और फिर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी.
अवैध निर्माण फिर भी जारी
किसी भी प्राधिकरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि महायोजना में निर्धारित भूउपयोग को नजरंदाज करके निर्माण और सुनियोजित शहरीकरण के रास्ते में आने वाली बाधाओं को रोकें। इसलिए प्राधिकरणों में प्रवर्तन विभाग होता है, जो सहायक अभियंता, अवर अभियंता और मेट की नियुक्ति करता है। जोन और उपजोन बनाए जाते हैं, लेकिन अवैध निर्माण फिर भी जारी रहता है। मेरठ महायोजना का क्षेत्रफल 2021 में लगभग 500 वर्ग किमी था, लेकिन 2031 में यह 1043 वर्ग किमी हो गया हैं।
भूनेत्र इस प्रकार करेगा काम
मेरठ महायोजना 2031 में क्षेत्र के हर खसरे का भूउपयोग निर्धारित है। भूउपयोग यानी जमीन का किस प्रकार का उपयोग किया जा सकता है, उदाहरण के लिए कृषि, आवास, उद्योग, आदि। महायोजना का एक डिजिटल मानचित्र बनाया गया है, जिसमें प्रत्येक खसरे पर भूउपयोग की उच्चतम जानकारी दी गई है। सैटेलाइट निगरानी से जुड़े साफ्टवेयर इसके बाद डिजिटल मैपिंग और फेंसिंग करता है। उस खसरे का सैटेलाइट चित्र फिर से लिया जाता है। निर्दिष्ट समय के बाद चित्र फिर से लिया जाता है। इससे उस खसरे में बदलाव दिखाया जाता है, यदि कोई निर्माण या विस्तार हुआ है। इस तंत्र लगातार इस बदलाव का चित्र भेजता है।