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Indian Railways : ट्रेन चलाने के लिए पटाखों का इस्तेमाल क्यों करता है रेल्वे, यह है वजह

रेलवे ट्रैक्स पर पटाखों का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, और यह रेलवे सुरक्षा और प्रबंधन के प्रमुख हिस्से के रूप में काम करते हैं। ये  दिवाली वाले पटाखों से अलग होते हैं आइए जानते हैं इनका क्या काम होता है।
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Indian Railways: Why does Railways use firecrackers to run trains, this is the reason

Saral Kisan (ब्यूरो) : भारतीय रेलवे एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। इसके माध्यम से प्रतिदिन बड़ी संख्या में यात्री सफर करते हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं। वहीं, देश की अर्थव्यवस्था में अहम भागीदारी निभाते हुए यह कई टन माल को एक जगह से दूसरी जगह पर भी पहुंचाती है। हालांकि, चाहे इंसान हो या फिर सामान, सभी को सही जगह और सही समय पर पहुंचाना रेलेव की जिम्मेदारी है, जिसके लिए रेलवे की ओर से अलग-अलग प्रबंध किए जाते हैं। क्या आपको पता है कि रेलवे में भी पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, यहां पर पटाखों का इस्तेमाल शौक के लिए नहीं, बल्कि जरूरत के लिए किया जाता है। कब और कहां किया जाता है पटाखों का इस्तेमाल, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।

रेलवे (Indian Railways) में विशेष प्रकार के पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है। यह पटाखे दीपावली के मौके पर जलाए जाने वाले पटाखों से अलग होते हैं। इन पटाखों को डेटोनेटर पटाखे कहा जाता है। डेटोनेटर पीले रंग की डिब्बे के बने होते हैं, जिसमें बहुत कम मात्रा में बारूद भरा होता है।

डेटोनेटर को रेलवे (Indian Railways) की पटरियों पर इस्तेमाल किया जाता है। यह माइंस की तरह काम करते हैं, यानि जैसे ही लोकोमोटिव का पहिया इनके ऊपर से गुजरता है, तो अधिक वजन पड़ने की वजह से यह फट जाता है। हालांकि, इसका धमाका बहुत ही हल्का होता है, जिससे किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है।

यह बात हम सभी को पता है कि रेलवे में लोको-पायलट (loco pilot) सिग्नल देखने के बाद ट्रेन का संचालन करते हैं, जिससे सभी मुसाफिरों और सामान को सुरक्षित तरीके से उनकी मंजिल तक पहुंचाया जा सके। हालांकि, जब भी सर्दी की शुरुआत होती है, तो लोको-पायलट को कोहरा पड़ने की वजह से दृश्यता में परेशानी होती है। वहीं, इस दौरान यदि ट्रैक पर कोई मरम्मत कार्य चल रहा होता है, तो हादसा होने का डर बना रहता है।

ऐसे में लोको-पायलट को सिग्नल पहुंचाने के लिए मरम्मत वाली जगह से करीब 800 मीटर पहले डेटोनेटर को फिट किया जाता है। लोकोमोटिव जैसे ही इनके ऊपर से गुजरता है, तो पटाखे फटने की वजह से संबंधित लोकोमोटिव के लोको-पायलट को पता चल जाता है कि आगे ट्रैक पर कुछ गड़बड़ है। ऐसे में वह 800 मीटर से ही ब्रेक लगाना शुरू कर देता है, जिससे ट्रेन मरम्मत वाली जगह से पहले ही रूक जाती है। हालांकि, इस दौरान रेलवे कर्मचारी लाल झंडी का भी प्रयोग करते हैं।

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