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बारिश के बाद पानी का तालाब बना ग्रेटर नोएडा, वजह जान रह जाएंगे हैरान

जब भी यहां पर बारिश होती है तो हर तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। बीते दिन शाम को हुई कुछ घंटे बारिश ने दफ्तर से घर जाने वाले लोगों को आधी रात तक बाजार की सड़कों पर घूमने के लिए मजबूर कर दिया। बहुत से लो......
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बारिश के बाद पानी का तालाब बना ग्रेटर नोएडा, वजह जान रह जाएंगे हैरान 

Rain In Noida : उत्तर प्रदेश में अगर स्मार्ट सिटी का नाम आता है, तो सबसे पहले नोएडा का लिया जाता है। नोएडा सिटी दिल्ली की जुड़वा बहन बन चुकी है। क्योंकि नोएडा में रहने वाले करीबन लोगों से अगर पूछा जाए, तो अक्सर दिल्ली का नाम लिया जाता है। उत्तर प्रदेश की सबसे पहले स्मार्ट सिटी में आने वाला नोएडा शहर बरसात के मौसम में अपना रंग दिखा देता है। 

जब भी यहां पर बारिश होती है तो हर तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। बीते दिन शाम को हुई कुछ घंटे बारिश ने दफ्तर से घर जाने वाले लोगों को आधी रात तक बाजार की सड़कों पर घूमने के लिए मजबूर कर दिया। बहुत से लोगों की गाड़ियों में पानी घुसने की वजह से सड़क के बीच में ही बंद पड़ गई और लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। 

क्यों सहन नहीं कर पा रहा पानी 

नोएडा की उम्र दिल्ली से काफी छोटी है। दिल्ली का निर्माण साल 1911 में शुरू हुआ था और 1931 तक इसका आधिकारिक उद्घाटन कर दिया गया था। वहीं अगर नोएडा की बात की जाए तो यह करीबन 45 साल छोटा है। दिल्ली का निर्माण अंग्रेजों ने अपने हिसाब से किया था और नोएडा का निर्माण भारतीय हिसाब से किया गया है। नोएडा सिटी का निर्माण संजय गांधी ने अपनी कल्पना के आधार पर औद्योगिक सिटी के रूप में किया था। नोएडा का नाम न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के आधार पर रखा गया है। हर कोई जानता है कि ओखला दिल्ली से सटा एक इलाका है। धीरे-धीरे करके इसका नाम नोएडा पड़ गया। 

लेकिन बात यह आती है कि नोएडा शहर का प्लान कुछ इस तरह बनाया गया है, कि कुछ घंटे की बरसात के बाद यह पानी का तालाब बन जाता है। लेकिन कुछ घंटे के बाद इसका पानी निकल जाता है, आखिर ऐसा क्यों होता है। इस सवाल के जवाब के लिए हमें अतीत में जाना होगा। इस सिटी का निर्माण एक औद्योगिक सिटी के रूप में किया गया था और यहां पर उद्योगों में काम करने वाले लोगों के लिए घर बनाए गए थे। लेकिन उसे समय इन लोगों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी। करीबन 90 के दशक में इस शहर में कई सेक्टर रिहाईश के लिए भी बनाए गए थे। 

रिहायशी इलाका 

पुराने समय में इस शहर में जलवायु विहार को ही रिहायशी सोसायटी बनाया गया था। जलवायु विहार के लोगों के लिए आवासीय कॉलोनी के तौर पर दिया गया था। इसके बाद अरुण विहार में भी कुछ प्लाट सेना के लोगों को दिए गए। इसके बाद सेक्टर 25 और 26 में भी रिहायशी कालोनियां बनाई गई। लेकिन इन्हें सिर्फ तीन फ्लोर तक ही बनाया गया था। धीरे-धीरे करके इन चार फ्लोर वाली बिल्डिंगों को 8 फ्लोर तक कर दिया गया। इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा कुछ चुनिदा विभागों को भी आवास की सुविधा दी गई। साल 2018 आते आते यहां पर आबादी काफी बढ़ गई। 

बिल्डरों ने किया कमाल 

साल 2005 में अचानक प्राधिकारण ने अपनी जमीन बिल्डरों को देनी शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने 25 से 30 मंजिल की ऊंची ऊंची इमारतें बनानी शुरू कर दी। लंबी चली कानूनी लड़ाई के बाद बिल्डरों के हक में फैसला आया। शहर में फ्लैटों का भूल भूलेया बन गया और निवेश करने वालों की पहली पसंद नोएडा बन गया। एक समय ऐसा आया कि नोएडा में जमीन खत्म हो गई और बगल के ग्रेटर नोएडा की जमीन को नोएडा एक्सटेंशन में लोगों ने जमीन खरीदनी शुरू कर दी। 

प्लानिंग हुई फेल 

जब नोएडा शहर बनाने की प्लानिंग की गई तो जरूर साधन जैसे सीवर, नालियों का आकलन उसके हिसाब से किया गया। लेकिन धीरे-धीरे आबादी बढ़ने के कारण यह जरूरी संसाधन लोगों के लिए कम पड़ने लगे और साफ सफाई की संरचना बिगड़ने लगी। इस बार सरकार द्वारा तमाम नालों से गुजरने वाली सड़कों को तोड़कर साफ किया गया। लेकिन जैसे ही इनको साफ करके दोबारा बनाई गई तो इन नालियों से बरसात का पानी नहीं निकल पाया और सड़के पानी से लबालब हो गई। 

जिससे प्राधिकरण हर मामले में दोष मुक्त हो गया। इन सभी सुविधाओं की जिम्मेवारी प्राधिकरण की है क्योंकि यहां से अथॉरिटी सबसे अधिक रेवेन्यू कमा रही है। जिससे उनके जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। लेकिन नोएडा का विस्तार होता गया और नालियों का विस्तार रुक गया। नालियों में जेसीबी से झाड़ू लगवा देना कोई बड़ा हल नहीं है। इस मामले पर सरकार को विचार करने की जरूरत है।

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