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Farmer News: इस दाल की खेती किसानों को बना देगी मालामाल, ये है उन्नत किस्म

दोमट से भारी मिट्टी इसकी खेती के लिए बेहतर है, इसलिए बुवाई और मिट्टी के लिए समय चाहिए। यह अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक या देर से दिसंबर के पहले हफ्ते तक बुवाई जा सकती है

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Farmer News: Cultivation of this pulse will make farmers rich, this is an advanced variety

Masoor ki Kheti: दलहन फसलों में मसूर बहुत महत्वपूर्ण है। मसूर की दाल को खाने से कब्ज और अनियमित पाचन क्रिया दूर होती है।  इसका इस्तेमाल मिठाइयों, नमकीनों और खाने में भी किया जाता है। धान होने के बाद खाली खेती में मसूर की बुवाई की जाती है। मसूर को कमर्शियल तौर पर खेती करके किसान अच्छे पैसे कमाते हैं। 

दोमट से भारी मिट्टी इसकी खेती के लिए बेहतर है, इसलिए बुवाई और मिट्टी के लिए समय चाहिए। यह अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक या देर से दिसंबर के पहले हफ्ते तक बुवाई जा सकती है। पंतनगर जीरो टिल सीड ड्रिल से मसूर की बुवाई अधिक लाभदायक है। 

मसूर की उन्नत किस्में: मसूर की खेती करके बहुत पैसा कमाया जा सकता है। आई.पी.एल.-81, नरेन्द्र मसूर-1, डी.पी.एल.-62, पन्त मसूर-5, पन्त मसूर-4, डी.पी.एल.-15, एल-4076, पूसा वैभव, के-75, HUL-57 (मालवीय विश्वनाथ), CLS-218, IPL-406, शेखर-3, शेखर-2 और IPL-316 इसकी उन्नत किस्में हैं। 

बीजोपचार समय से बुवाई के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर चाहिए, जबकि पिछेती और उत्तेरा बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज चाहिए। 10 किग्रा बीज को 200 ग्राम राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम कल्चर से मिलाकर मसूर के एक पैकेट में बोना चाहिए। विशेष रूप से ऐसे खेतों में जहां पहले मसूर नहीं बोया गया था। रासायनिक और बीजोपचार के बाद बीजोपचार किया जाना चाहिए। PSB जरूर इस्तेमाल करें। 

फूल आने से पहले खाद और सिंचाई करनी चाहिए। धान के खेतों में बोई गई मसूर की फसल को फली बनने के समय सिंचाई करनी चाहिए। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर बुवाई में उपयोग किया जाता है। उतेरा विधि से बुवाई के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन को धान की कटाई के बाद टापड्रेसिंग करें और 30 किग्रा फास्फोरस को फूल आने और फलिया बनते समय पत्तियों पर छिड़कें। 

कृषि सुरक्षा के लिए माहू कीट— ये कीट पत्तियों, तनों और फलियों का रस चूसकर उन्हें कमजोर करते हैं। सेमीलूपर: इस कीट की हरे रंग की सूडियां लूप बनाकर चलती हैं। सूडियां कोमल टहनियों, कलियों, फूलों, फलियों और पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं। फली कीट- इस कीट की सूड़ियं फलियों में छेद बनाकर दानों को खाती रहती है। इससे फलियां टूट जाती हैं और उत्पादन कम होता है। 

फसल पूरा पकने पर कटाई करें। 2 गोली अल्यूमिनियम फास्फाइड प्रति मीट्रिक टन की दर से मड़ाई के बाद फसल को भंडारण में कीटों से बचाने के लिए इस्तेमाल करें।

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