Liquor : पुरानी शराब हमेशा क्यों बिकती है लाखों रुपए में, बोतलों पर लिखे Years का असली मतलब क्या हैं
Purani Sharab : आपने शायद सुना होगा कि पुरानी शराब की बोतल लाखों में बिकती है अगर आप शराब पीने का शौक रखते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एज स्टेटमेंट वाली शराब ही अधिक मूल्यवान होती है। पुरानी शराब का सबूत होना चाहिए। महंगी शराब की बोतलों पर अक्सर 7 वर्ष या 12 वर्ष लिखा होता है। नीचे खबर में आप इसका अर्थ जानेंगे..
Saral Kisan : पुरानी शराब बेहतर होती हैं है। पीने वाले भी इसे भली भांती जानते भी हैं। यह बात बॉलीवुड फिल्मों के किरदारों से लेकर स्वयंभू कलाकारों तक ने लोगों के मन में बस गई है। "एज स्टेटमेंट" वाली शराब भी महंगी है। शराब की बोतलों पर उसके पुराने होने का दर्ज सबूत। जैसा कि आपने देखा होगा, व्हिस्की की बोतलों पर सात वर्ष, बारह वर्ष और पंद्रह वर्ष लिखा होता है। ये न केवल आम शराब, यानी "नो एज स्टेटमेंट" वाली व्हिस्कियों की तुलना में अधिक महंगी हैं, बल्कि बेहतर भी मानते हैं।
लेकिन, क्या यह पूरी तरह से सही है? एज स्टेटमेंट वाली शराब इतनी महंगी क्यों होती है? क्या ये बेहतर हैं? गुणवत्ता और शराब की उम्र में क्या संबंध है? क्या शराब को संजोकर रख भरने से उसकी लागत गुजरते वक्त बढ़ेगी? आइए ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर जानें।
एजिंग क्या है?
सबसे पहले यह समझ लेते हैं कि यह एजिंग (Aging) प्रक्रिया है क्या, जिससे गुजरने के बाद किसी व्हिस्की की गुणवत्ता और कीमत, दोनों बढ़ जाती है. सामान्य अर्थों में समझने की कोशिश करें तो एज्ड व्हिस्की (Aged Whisky)वे हैं, जिन्हें तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें कुछ बरसों तक लकड़ी के पीपों में स्टोर करके रखा गया हो।
यानी व्हिस्की को कितने वक्त तक खास किस्म की लकड़ी के पीपों या बैरल में रखा गया है. यानी बोतल पर लिखे 7 ईयर का सीधा मतलब यह है कि फलां व्हिस्की को कम से कम 7 साल तक बैरल में रखा गया था. व्हिस्की के विभिन्न प्रकार यानी बरबन, आयरिश, स्कॉच आदि सभी को एक निश्चित समय तक खास किस्म के लकड़ी के पीपों में रखने का नियम है. उदाहरण के तौर पर बरबन तैयार करने के लिए व्हिस्की को कम से कम 2 सालों तक जली हुई ओक लकड़ी के बैरल में रखना होगा. वहीं, स्कॉच कहलाने के लिए जरूरी है कि व्हिस्की को कम से कम 3 साल से ज्यादा वक्त तक बैरल में रखा गया हो।
एजिंग में आखिर होता क्या है?
यह भी जानने की जरूरत है कि व्हिस्की को इतने बरसों तक इन पीपों में आखिर क्यों रखा जाता है. दरअसल, जिन लकड़ियों के पीपे में व्हिस्की को स्टोर किया जाता है, वो इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करते हैं. एजिंग के दौरान इन लकड़ियों का फ्लेवर ही व्हिस्की में घुलते जाता है, जो बोतलों में भरे जाने तक कायम रहता है। एजिंग के दौरान व्हिस्की लकड़ी के रेशों के अंदर घुसकर रासायनिक प्रतिक्रियाएं करता है, जिससे वुड शुगर और कई केमिकल्स उत्पन्न होते हैं और व्हिस्की में घुलते जाते हैं. इस दौरान तापमान भी एक अहम भूमिका निभाता है.
जब लकड़ी गर्म होती है तो यह फैलती है और ज्यादा एल्कॉहल सोखती है. वहीं, जब ठंडी होती है तो इन लकड़ियों से व्हिस्की, कलर्स, शुगर और अन्य फ्लेवर आदि बैरल में मौजूद लिक्विड में मिलती जाती है. इस तरह व्हिस्की का रंग-रूप और स्वाद तैयार होता है।
एजिंग से शराब महंगी क्यों हो जाती है?
एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की की बोतलें आम तौर पर महंगी मिलती हैं. इसकी वजह बेहद आम है. दरअसल, इतने साल तक व्हिस्की को रखे रहना एक खर्चीला काम है. इस दौरान शराब निर्माता वक्त, संसाधन सब कुछ निवेश करते हैं और शराब के तैयार होने का सालों तक इंतजार करते हैं. इनके महंगे होने का एक कारण और भी है. किसी व्हिस्की को जितने वक्त तक बैरल में रखा जाता है, वक्त के साथ इनका वाष्पन (evaporation) होता जाता है.
यानी एल्कॉहल के भाप बनकर उड़ने से गुजरते वक्त के साथ शराब की मात्रा कम हो जाती है. पीपों में रखने के दौरान शराब की इस घटी हुई मात्रा को तकनीकी भाषा में एंजेल्स शेयर (angel’s share) या आसान शब्दों में 'देवदूतों का हिस्सा' कहते हैं. शराब निर्माता इस एंजेल्स शेयर की लागत भी उत्पादन मूल्य में जोड़ते हैं. अब आप समझ गए होंगे कि एक ही कंपनी की 18 साल पुरानी स्कॉच व्हिस्की, उसके 15 साल पुरानी व्हिस्की से ज्यादा महंगी क्यों बिकती है।
लाखों में क्यों बिकती है पुरानी बोतल?
यहां समझना होगा कि पीपों में शराब रखने की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है. बहुत सारी ऐसी लकड़ियां होती हैं, जिनमें स्टोर करने के कुछ बरस बाद व्हिस्की की गुणवत्ता खराब होने लगती है. ऐसे में उन्हें एक निश्चित समय से ज्यादा स्टोर करके नहीं रखा जा सकता. यानी 12 साल, 15 साल, 18 साल तक एजिंग करना बेहद मुश्किल काम होता है. ऐसा नहीं है कि इन पीपों में शराब भरकर अब कुछ दशकों तक भूल जाइए और अचानक से इन्हें खोलकर लाखों-करोड़ों कमा लीजिए. व्हिस्की को बरसों तक इन लकड़ियों के बैरल्स में रखने का एक पूरा विज्ञान है. यही जटिलता ही पुरानी एज्ड व्हिस्की की कीमतों में इजाफा करती है.
उदाहरण के तौर पर जापानी व्हिस्की यामाज़ाकी-55 की बात करते हैं. इसे तैयार करने में 55 साल या उससे ज्यादा वक्त लगा है. यह जापान में तैयार आज तक की सबसे पुरानी और महंगी व्हिस्की है. इसे जिस लकड़ी के पीपों में रखकर तैयार किया जाता है, उसे मिज़ुनारा कास्क कहते हैं. इसे मिज़ुनारा पेड़ की लकड़ी से बनाया जाता है. यह लकड़ी बहुत ही दुर्लभ है. जानकार कहते हैं कि मिज़ुनारा कास्क बनाने के लिए जरूरी है कि पेड़ कम से कम 200 साल पुराना हो।
क्या घर पर रखे-रखे शराब महंगी हो जाएगी?
अब वो सवाल, जो हर शख्स के दिमाग में कभी न कभी जरूर आया होगा. अगर हमारे घर में कोई 12 ईयर एज्ड व्हिस्की रखी हो और 20 साल बाद अचानक से किसी दिन हमें मिल जाए तो क्या पैकिंग होने से 3 दशक गुजरने की वजह से इसकी वर्तमान कीमत और ज्यादा हो जाएगी? क्या एज्ड व्हिस्की को घरों में रखकर कुछ बरस बाद उन्हें बेचा जाए तो वे और महंगी हो जाएंगी?
जवाब है, नहीं. दरअसल, बोतल में बंद व्हिस्की एजिंग की प्रक्रिया से नहीं गुजर रही. एजिंग यानी वो समयांतराल जब व्हिस्की को बैरल में डाला गया और जब उसे बाहर निकाला गया. यानी कोई शराब कितने साल तक इन लकड़ी के पीपों में बंद रही. अच्छी बात यह है कि बोतलों में बरसों तक बंद होने के बावजूद इन व्हिस्की की स्वाभाविक प्रकृति नहीं बदलती. यानी एक 12 साल पुरानी स्कॉच का फ्लेवर 20 साल गुजरने के बाद बोतल खोलने पर भी वैसा ही मिलेगा।
एजिंग से बेहतर हो जाती है व्हिस्की?
जहां तक जायके और फ्लेवर की बात है, यह हर इंसान की अपनी व्यक्तिगत पसंद का मामला हो सकता है. किसी शख्स को नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की ज्यादा पसंद आ सकती है तो किसी को 12 साल पुरानी स्कॉच. हालांकि, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि व्हिस्की जितने वक्त तक पीपों में रखी होती है, इसका फ्लेवर गहरा और बेहतर होता जाता है. इस गुजरते वक्त के साथ एल्कॉहल की कड़वाहट भी कम होती जाती है, जो इसे बहुत सारे लोगों के पीने के लिए ज्यादा मुफीद बनाती है.
व्हिस्की निर्माण से जुड़े परंपरागत लोग यही मानते हैं कि एजिंग की प्रक्रिया प्राकृतिक है, वहीं डिस्टिलेशन का प्रॉसेस इंसानी, इसलिए एज्ड व्हिस्की बेहतर है. हालांकि, वाइन एक्सपर्ट मानते हैं कि स्वाद को छोड़कर और कोई दूसरा मापदंड नहीं है, जिसके आधार पर एज्ड व्हिस्की को नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की से बेहतर समझा जाए. यानी एज्ड व्हिस्की बेहतर हो न हो, लेकिन महंगी होती हैं, इस तथ्य को खारिज नहीं किया जा सकता।
एजिंग से बेहतर हो जाती है व्हिस्की?
जहां तक जायके और फ्लेवर की बात है, यह हर इंसान की अपनी व्यक्तिगत पसंद का मामला हो सकता है. किसी शख्स को नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की ज्यादा पसंद आ सकती है तो किसी को 12 साल पुरानी स्कॉच. हालांकि, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि व्हिस्की जितने वक्त तक पीपों में रखी होती है, इसका फ्लेवर गहरा और बेहतर होता जाता है.
इस गुजरते वक्त के साथ एल्कॉहल की कड़वाहट भी कम होती जाती है, जो इसे बहुत सारे लोगों के पीने के लिए ज्यादा मुफीद बनाती है. व्हिस्की निर्माण से जुड़े परंपरागत लोग यही मानते हैं कि एजिंग की प्रक्रिया प्राकृतिक है, वहीं डिस्टिलेशन का प्रॉसेस इंसानी, इसलिए एज्ड व्हिस्की बेहतर है. हालांकि, वाइन एक्सपर्ट मानते हैं कि स्वाद को छोड़कर और कोई दूसरा मापदंड नहीं है, जिसके आधार पर एज्ड व्हिस्की को नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की से बेहतर समझा जाए. यानी एज्ड व्हिस्की बेहतर हो न हो, लेकिन महंगी होती हैं, इस तथ्य को खारिज नहीं किया जा सकता.
नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की क्या हैं?
अब यह बात साफ हो चुकी है कि स्कॉच हो या बरबन, कोई भी एज्ड व्हिस्की सीमित मात्रा में उत्पादन और उपलब्धता की वजह से दुनिया की जरूरत पूरी नहीं कर सकता. ऐसे में पूरी दुनिया में नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्कियों का चलन बढ़ा है. नो एज स्टेटमेंट यानी इसकी या तो एजिंग नहीं की गई या 3 साल से कम वक्त तक की गई हो.
इस पद्धति से तैयार शराब की बोतलों पर एज स्टेटमेंट नहीं होता और इनको विभिन्न किस्म की शराब को आपस में मिलाकर तैयार किया जा सकता है. पारंपरिक लोगों के दिमाग में तो यही धारणा है कि एजिंग वाली शराब इन नॉन एज स्टेटमेंट वाली शराब से ज्यादा बेहतर होती है. हालांकि, बेहतर डिस्टिलेशन तकनीक, जोरदार मार्केटिंग और आसान उपलब्धता की वजह से नो एज स्टेंटमेंट वाली व्हिस्की भारत समेत पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय हो चुकी हैं.
एज स्टेटमेंट में एक बड़ा पेंच! इसे समझ लीजिए
बहुत सारी शराब कंपनियां ब्लेंडड व्हिस्की या ब्लेंडड रम आदि भी तैयार करती हैं. ब्लेंडेड यानी उसे तैयार करने में कई किस्म की शराब को आपस में मिलाया गया हो. उदाहरण के तौर पर जॉनी वॉकर ब्लैक को तैयार करने में कई किस्म की व्हिस्की मिलाई जाती है. ऐसे में इनकी बोतलों पर दर्ज ऐज स्टेटमेंट का असली मतलब यह है कि मिक्स की गई सभी शराब में जिसकी उम्र सबसे कम हो, उसका बोतल पर जिक्र करना. कानूनी तौर पर ऐसा करना अनिवार्य है.
इसे एक अन्य उदाहरण से समझिए. भारतीय कंपनी मोहन मीकिन की मशहूर रम ओल्ड मंक पर लिखा होता है- 7 year old blended. इसका कतई यह मतलब न निकालिएगा कि यह रम 7 साल तक एज करके तैयार की गई है. इसका मतलब यह है कि इस रम को तैयार करने में इसमें एक ऐसी रम भी मिलाई गई है, जो 7 साल तक ऐज है.
ज्यादातर इंडियन ब्रांड्स क्यों नहीं बनाते एज्ड व्हिस्की
यह समझने की जरूरत है कि वैश्विक स्तर पर शराब की जितनी खपत है, उसे सिर्फ एज्ड व्हिस्की के जरिए पूरा नहीं किया जा सकता. बरसों तक स्टोर करके तैयार करना और फिर उन्हें बाजार में भेजने की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि हर ग्राहक उसके लिए इंतजार नहीं कर सकता. ऐसे में पूरी दुनिया में नो एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्कियों का चलन बढ़ा है. भारत जैसे देश में शराब की खपत इतनी ज्यादा है कि देसी कंपनियां एजिंग की महंगी और लंबी प्रक्रिया को नहीं अपना सकतीं।
इसलिए भारत के अधिकांश शराब ब्रांड बिना एज स्टेटमेंट वाली व्हिस्की ही बनाती और बेचती हैं. वहीं, कुछ वाइन एक्सपर्ट मानते हैं कि भारत का तापमान और आबोहवा ऐसा है कि यहां व्हिस्की कम वक्त में ही मैच्योर हो जाती है. कुछ का मानना है कि भारत में 1 साल तक की एजिंग स्कॉटलैंड में 3 साल की एजिंग के बराबर है. अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत 3 साल से कम वक्त में बोतल पर एज स्टेंटमेंट नहीं डाला जा सकता, इसलिए अधिकतर भारतीय ब्रांड्स पर उसका जिक्र नहीं होता.
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