उत्तर प्रदेश में एक ऐसी सैंकड़ों साल पुरानी ऐसी सड़क जो 4 देशों और 10 राज्यों से जुड़ती है
Saral Kisan, UP : गुप्त काल में बने उत्तरपथ पर शेरशाह सूरी की नजर पड़ी तो उसने पूर्व से लेकर पश्चिम तक सड़क बनवा डाली। मैनपुरी से होकर गुजरने वाली यह सड़क इकलौती ऐसी सड़क है जो एशिया के चार देश और भारत के आठ राज्यों को जोड़ती है। कोलकाता से मैनपुरी होकर पेशावर तक का सफर कराने वाली ये सड़क इकलौती ऐसी सड़क है जो सामरिक, व्यापारिक दृष्टि से भारत को मध्य एशिया से जोड़ती है। पूर्व में मिजोरम के चित्तागोंग से शुरू होकर यह सड़क पश्चिम में काबुल तक का सफर कराती है। इस दौरान बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान इसके बीच में पड़ते हैं। इस सड़क को ही ग्रांड ट्रंक रोड कहा जाता है। मैनपुरी क्षेत्र में इस सड़क की सीमा 60 किमी है, जो सिक्सलेन में तब्दील की जा रही है।
इतिहासकार कमल शर्मा बताते हैं कि बात मुगल सल्तनत की हो या फिर अंग्रेजी हुकूमत की। हुक्मरानों के लिए मैनपुरी हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा। यही वजह रही की गंगा और यमुना के बीच में बसे मैनपुरी को महत्वपूर्ण माना गया। गंगा की तरफ शेरशाह सूरी मार्ग बनाया गया और यमुना की तरफ नेशनल हाईवे दिल्ली कानपुर का निर्माण कराया गया। इस समय आगरा लखनऊ एक्सप्रेसवे भी मैनपुरी का बड़ा हिस्सा है।
इस सड़क को अब तक यह नाम मिले
उत्तरपथ, सड़क ए अज़म, शाह राह के अजम, बादशाही सड़क, लोंग वॉक, ग्रांड ट्रंक रोड, शेरशाह सूरी मार्ग, नेशनल हाईवे 1, 6 लेन मार्ग
इन राज्यों को जोड़ती है यह सड़क
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा
इस सड़क से जुड़े हुए हैं ये देश
भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश
फैक्ट फाइल
2400 किमी लंबी है यह सड़क
322 ईसवी पूर्व से बनी हुई है यह सड़क
4 देशों को जोड़ती है ये सड़क
8 राज्यों को जोड़ती है ये सड़क
रोचक तथ्य
फारसी रॉयल रोड से प्रेरित होकर बनाई गई थी यह सड़क
महाभारत काल में उत्तरपथ दिया गया था नाम
सम्राट अशोक, शेरशाह सूरी ने भी बनाई थी सड़क
16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी ने इस सड़क का कराया था चौड़ीकरण और मरम्मत
मध्य एशिया से पूरे भारत को जोड़ती है यह सड़क
राजा चंद्रगुप्त मौर्य ने इस सड़क की देखभाल के लिए बनाई थी सड़क सेना
हर डेढ़ किमी दूरी पर बनवाए गए थे कुआं
सम्राट जहांगीर ने इस सड़क पर कराया था पुणे का निर्माण
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान 1830 में सड़क को पक्का करने का काम शुरू किया गया