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क्या उखेड़ा रोग? जानिए इसे ठीक करने के उपाय

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Saral Kisan: हम सभी जानते है कि किसान कितनी मेहनत करके फसल उगाता हैं परंतु पैदावार लेने के समय अंत में अचानक फसल नष्ट होने से किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. उखेड़ा एक इसी तरह का रोग है जिससे अचानक नरमा कपास का पौधा सूख जाता है जिससे कपास की फसल बिल्कुल खत्म हो जाती है किसान भाइयों इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए हम आपके लिए कुछ उपाय लेकर आए है. चलिए जानते है....

जैसा कि हम जानते है कि नरमा कपास में उखेड़ा रोग हल्की जमीनों में बार-बार एक ही फसल की बुवाई करने पर आता है जिसका कारण जमीन में पोषक तत्वों की कमी माना जाता है. परंतु कपास में टिंडे  लगने के समय पौधों को ज्यादा खुराक की जरूरत होती है लेकिन जमीन में पोषक तत्वों की कमी से उचित खुराक नहीं मिलती है और बरसात का मौसम होने से मच्छरों का प्रकोप भी ज्यादा हो जाने से अचानक फसल नष्ट हो जाती है.

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ये तीन कारण है 

दोस्तों हरियाणा के भिवानी जिले में कपास में उखेड़ा रोग से परेशान किसानों ने जब कृषि विशेषज्ञों से बातचीत की कि वे इस रोग से छुटकारा कैसे लें तो डॉक्टर विकास पूनिया ने कहा कि उखेड़ा रोग मुख्यतः तीन कारणों से होता है. पहला जड़ों की गहराई ना होना दूसरा फंगस और तीसरा जमीन से खुराक ना मिलना जिससे पौधे का विकास सही नहीं हो पाता है.

दोस्तों फंगस की वजह से कपास में उखेड़ा और सूखा रोग सबसे अधिक होता है. और वैज्ञानिक भाषा में इसे विल्ट/पेरा विल्ट और फिजियोलॉजिकल डिसऑर्डर बोला जाता है. यह रोग अधिकतर फंगस बैक्टीरिया से नहीं बल्कि अगस्त सितंबर माह में पौधों से जल्दी पानी उड़ जाने की और पौधे के सूखने की स्थिति में आ जाने से होता है. जिससे पौधे के टिंडे भी सूखने लगते हैं जिससे क्वालिटी में गिरावट आती है और फसल को खुराक की कमी का सामना भी करना पड़ता है क्योंकि अगस्त माह में लंबे समय बाद बारिश और पानी फसल में दिया जाता है.

सुखा या उखेड़ा रोग के उपाय 

दोस्तों कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर विकास पूनिया ने बताया कि किसान इसके लिए पाउडर या लिक्विड दोनों फॉर्म में उपलब्धता के हिसाब से ट्राइकोडरमा को इस्तेमाल कर सकते हैं. यह संगत से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है किसान लगातार फसल में पानी ना दें और बिजाई के लिए बढ़िया जुताई करनी चाहिए और डीएपी और माइकोराजा देने से पौधों की जड़ की गहराई बढ़ती है और जड़ गहराई पकड़ती है.

तीसरा खुराक उचित मात्रा पूरी करने के लिए 90 दिन के उपरांत 13045 भरपूर मात्रा में दे जो की क्वालिटी के मुताबिक दे सकते हैं बेस्ट क्वालिटी है तो 100 लीटर पानी में 1 किलो और यदि हल्की क्वालिटी है तो 2 किलो 13045 लगभग 10 दिन के अंतराल पर दे सकते हैं. 

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