धान की इस किस्म से सूखाग्रस्त इलाकों में मिलेगा जबरदस्त उत्पादन, जानिए
Saral Kisan: बिहार राज्य में धान की खेती सबसे अधिक होती है. हालांकि, यहाँ के किसान आज भी बारिश पर निर्भर करते हैं. समय पर वर्षा होने पर, पैदावार अच्छी होती है. अगर बारिश नहीं होती है, तो सूखा पड़ने की स्थिति उत्पन्न होती है. इस स्थिति में, धान की फसल पानी की कमी के कारण बर्बाद हो जाती है. हालांकि, अब किसानों को वर्षा के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. एक ऐसी विशेषता वाला धान है, जिसे सूखे इलाकों में भी उगाया जा सकता है. यानी इस धान को पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है.
अगर किसान भाइयों ने इस विशेष धान की खेती की है, तो उनकी फसल पर सूखे का कोई असर नहीं पड़ेगा और पैदावार अच्छी होगी. आइए इस श्रेष्ठ विकल्प के बारे में जानें, जिससे किसानों को अच्छा उत्पादन मिलेगा. साथ ही, सिंचाई के खर्च से भी आराम भी मिलेगा.
ऐसे होगी पैसों की बचत
बिहार के सूखे प्रभावित क्षेत्रों के लिए सुबौर कुंवर धान एक उत्कृष्ट विकल्प है. यह धान की एक विशेष किस्म है, जिसके लिए काफी कम पानी की जरूरत होती है. इसकी खेती सूखे इलाकों में की जा सकती है. जहानाबाद, और पटना जिलों के किसान सुबौर कुंवर धान की खेती कर सकते हैं. सुबौर कुंवर धान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें साधारण धान के मुकाबले 25 फीसदी कम खाद की आवश्यकता होती है. ऐसे में, खाद के खर्च से भी किसानों को आराम मिलेगा.
सुबौर कुंवर धान की फसल 110 से 115 दिनों में पक जाती है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने सुबौर कुंवर धान का विकास किया है. इसकी फसल 110 से 115 दिनों में पक जाती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जहां पानी की कमी होती है या फिर बारिश कम होती है, वहां के किसान सुबौर कुंवर धान की खेती कर सकते हैं. यदि हम इसकी उपज की बात करें तो एक हेक्टेयर भूमि पर खेती करने पर औसतन 60 क्विंटल तक उत्पादन मिल सकता है, जबकि इसका अधिकतम उत्पादन 87 क्विंटल है.
इन जिलों के किसान कर सकते हैं सुबौर कुंवर की खेती
सुबौर कुंवर के पौधों की लंबाई 100 से 105 सेंटीमीटर तक होती है. इसमें अंगमारी रोग, कंडुआ रोग, झोंका रोग और जीवाणु झुलसा रोग से लड़ने की झमता अधिक है. भोजपुर, औरंगाबाद, बक्सर, लखीसराय, रोहतास, गया, बेगूसराय, पटना, समस्तीपुर और भागलपुर के किसानों को इसकी खेती से ज्यादा फायदा होगा.