बाजरा की खेती का सही तरीका, अधिक उत्पादन देने वाली किस्में, अन्य रोग और उसके लक्षण एवं उपचार
बाजरा की खेती: बलुई दोमट और ऐसी भूमि जहां जल निकास की बढ़िया व्यवस्था हो, बाजरा की खेती ( Bajre ki Kheti )के लिए सही होती हैं. खेत में हल और ट्रेक्टर कल्टीवेटर से दो और तीन बार जुताई करें, जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, आदि उपलब्ध हों तो 10 टन/हैक्टर की दर से बुआई के 15-20 दिनों पूर्व खेत में समान रूप से छिड़ककर भूमि में बढ़िया तरह मिला देना चाहिए. जैविक खाद के प्रयोग से मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है तथा भूमि की जलधारण क्षमता को बढ़ाती है.
बाजरा की खेती के लिए जलवायु प्रखण्ड के मुताबिक प्रजातियाँ :
देशी: मैनपुरी.
संकर : PM सुपर-450 पूसा-332, पूसा-23, आई.सी.एम.एच.-451,
अन्य : आई.सी.एम.वी.-155, डब्ल्यू सी.सी.-75, आई.सी.टी.पी.-8203, राज-171
बाजरा खेती में बीज की दर: 4-5 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है.
बीजोपचार : बाजरे के बीज को बोने से पहले 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर द्वारा अरगट के दानों को निकाल कर 2-3 बार साफ पानी में धोकर थीरम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा.बीज की दर से शोधित कर लेना चाहिए. पि.एस.बी जैवि उर्वरक @ 250 मिली. और तरल कन्सोरटिअ @ 250 मिली को आवश्कतानुसार पानी में घोल कर बीज की देर पर डाले , हाथ से मिलाएं और छाया में सुखाकर बुआई करें. बाजरा की खेती का सही तरीका, अधिक उत्पादन देने वाली किस्में, अन्य रोग और उसके लक्षण एवं उपचार
बाजरा बुवाई का समय :
देसी : जुलाई के मध्य में बोना चाहिए.
संकर : जुलाई के अन्तिम सप्ताह में बोना चाहिए.
बाजरा बुवाई की दूरी :
देसी प्रजातियों - के लिए पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 x 15 सेमी.
संकर जातियों - के लिए 30 X 10 सेमी. होनी चाहिए.
बाजरा में उर्वरकों का प्रयोग : सामान्यतया मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
10 से 12 टन कम्पोस्ट की खाद डालना भी आवश्यक है. बाजरे की खेती के लिए संकर प्रजातियों हेतु 100 किग्रा. नत्रजन, 50 किग्रा. फास्फेट तथा 25 किग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है, जिसके लिए एन.पी.के. 12:32:16 देशी प्रजातियों में 80 किग्रा. तथा संकर जातियों में 156 किग्रा., देशी प्रजातियों में 28 किग्रा. एवं संकर प्रजातियों में 50 किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर बुवाई से पहले प्रयोग कर लें तथा यूरिया देशी प्रजातियों में 90 किग्रा. और संकर प्रजातियों में 178 किग्रा. प्रति हेक्टेयर खड़ी फसल में आवश्यकतानुसार दो या तीन बार प्रयोग करें.
बाजरा फसल सुरक्षा -
(अ) खरपतवार नियंत्रण :
20 दिन बाद एक निराई करके रिक्त स्थानों की भराई कर लेनी चाहिए तथा
खरपतवारों को एट्राजीन @ 1.25 कि.ग्रा. को 400-500 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरन्त बाद 2 दिनों के अन्दर छिड़काव करें.
बाजरा में कण्डुआ रोग के लक्षण और रोकथाम
लक्षण : यह फफूंदी जनित रोग है. बालियों में दाना बनते समय रोग के लक्षण दिखाई देते हैं. रोग ग्रसित दाने बड़े, गोल या अण्डाकार हरे रंग के दिखाई देते है बाद में दानों के अन्दर काला चूर्ण भरा होता हैं.
रोकथाम
1. बीज शोधित करके बोना चाहिए.
2. एक ही खेत में प्रति वर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए.
3. रोग ग्रसित बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए.
4. रोग की संभावना दिखते ही फफूंदी नाशक जैसे यमातो (कार्बेन्डाजिम 50WP) की 1.0 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए.
बाजरा में मृदुरोमिल आसिता व हरित बाल रोग के लक्षण और रोकथाम
लक्षण : रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पीली पड़ जाती है तथा निचली सतह पर फफूंद की हल्के भूरे रंग की वृद्धि दिखाई देती है. पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा बालियों के स्थान पर टेड़ी मेड़ी गुच्छेनुमा हरी पत्तियॉ सी बन जाती है.
रोकथाम
1.प्रभावित पौधों को निकालना और नष्ट करना.
2. थायरम या कैप्टान @ 3 ग्राम / किग्रा बीज के साथ बीजोपचार करें.
3.रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाय.
4 .यमातो (कार्बेन्डाजिम 50 WP) या कार्बाक्सिन 1.00 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे0 की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए या ज़ैनब @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें.
बाजरा में अरगट रोग के लक्षण और रोकथाम
लक्षण : संक्रमित फूलों से शहद ओस का स्राव निकलना, इससे मक्की और चींटियों का आकर्षित होते हैं . बाद में ये कठिन काठिन्य के रूप में बदल जाते है .
रोकथाम
केप्टन या थिराम @ 4 ग्राम प्रति किलो बीज की डॉ से बीजोपचार करें
10 प्रतिशत आम नमक के घोल में बीज डुबोएं और तैर स्क्लेरोटिअ को हटा दें.
अकारी पत्ती और पुष्पन अवस्था पर ज़िरम@0.2% या यमातो (कार्बेन्डाजिम) @0.1% या सात्सुमा (मैंकोजेब) @0.2% के साथ स्प्रे करें.
बाजरा में रथुआ रोग के लक्षण और रोकथाम
लक्षण पहले ज्यादातर निचली पत्तियों पर छोटे छोटे पुस्तुलेस के रूप में दिखाई देते हैं, गोल लाल भूरे रंग के होते हैं. पूरा पत्ता पूरी तरह से एक झुलसा हुआ दिखाई देता है.
रोकथाम
1.जंगली बैंगन जैसे खरपतवारों का नष्ट करना.
2.वित्तबल सल्फर @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या सात्सुमा (मैंकोजेब) @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ 15 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे करें
प्रतिरोधी किस्में का चयन करें.
बाजरा में तना छेदक कीट के लक्षण और रोकथाम
लक्षण : इस कीट की सूंड़ियां तने में छेद करके अन्दर ही अंदर खाती रहती हैं जिससे बीच का गोभ सूख जाता है.
रोकथाम
1. इसोगाशी (इमिडाक्लोप्रिड 17.8SL) @ 7 मिली / किग्रा बीज के साथ बीजोपचार करें.
2. इसका नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी 4 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बुआई के 30 -45 दिन बाद पत्तों के गुच्छा में डालें अथवा अथवा डाईमेथोएट 30 EC 1.0 ली0 प्रति हे0 चिड़कव करें
बाजरा में प्ररोह मक्खी कीट के लक्षण और रोकथाम
लक्षण : केंद्रीय अंकुरित सूख और "मृत हृदय" लक्षण पैदा करते हैं.
रोकथाम
डिमेथोएटे 30 EC - 1.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से चिड़ाव करें.
उपज -
दाने - 650 -1300 Kg /हेक्टेयर
चारा - 20 -40 टन /हेक्टेयर
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