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Chandan Farming: उत्तर भारत में भी किसानों को मालामाल करेगी चंदन की खेती, किया जा रहा शोध

Sandalwood Cultivation In Haryana : चंदन के पेड़ लगभग बारह से पंद्रह साल में तैयार हो जाते हैं। संस्थान में इसके पौधों पर एक एकड़ जमीन पर शोध चल रहा है ताकि तैयार होने की अवधि को कम किया जा सके। चंदन परजीवी पौधा है, इसलिए इस पर शोध चल रहा है कि उसे कौन सा मेजबान (खुराक देने वाला) पौधा चाहिए और उसे कितना खाद और पानी चाहिए। चंदन के पौधे को बेहतर खुराक मिल सके।
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Chandan Farming: उत्तर भारत में भी किसानों को मालामाल करेगी चंदन की खेती, किया जा रहा शोध

Haryana News : चंदन का संबंध भारतीय संस्कृति से सदियों से है। चंदन तिलक और पूजन में भी प्रयोग किया जाता है। इसकी लकड़ी को सफेद और लाल चंदन के रूप में मूर्ति, साज-सज्जा, अगरबत्ती और परफ्यूम बनाने में भी उपयोग किया जाता है। वहीं, चंदन को अरोमा थेरेपी में भी प्रयोग किया जाता है। चंदन आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी उपयोग किया जाता है।

डॉ. आर के यादव, देश के एकमात्र केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल, ने बताया कि दक्षिण भारत में चंदन की खेती सबसे अधिक होती है। क्योंकि 2001 में केंद्र सरकार द्वारा चंदन की खेती पर प्रतिबंध हटाने के बाद चंदन की खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है लेकिन तकनीक में भारी कमी के कारण इसकी खेती को उम्मीद की गति नहीं मिली। अब, हमारे संस्थान के विशेषज्ञों ने चंदन में क्लोन्स को विभिन्न स्थानों से लेकर उतरी भारत के वातावरण के अनुकूल बनाया है। पिछले तीन वर्षों में इन्हीं योजनाओं पर अध्ययन किया गया है। हमें चंदन के अच्छे पौधे मिल गए हैं। हम भी उसे खेतों में ले गए हैं।

इन राज्यों में चंदन की खेती की शुरुआत

गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसान अब दक्षिण भारत के प्राकृतिक जंगलों में पाए जाने वाले चंदन को खेतों में उगा रहे हैं, केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) करनाल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. राज कुमार ने बताया। अब हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कृषक भी इसे उगाने लगे हैं। अब देश के कई अन्य किसानों ने चंदन की खेती करने की इच्छा व्यक्त की है। किसानों को सिर्फ सफेद चंदन उगाने की सलाह दी जा रही है। गुणवत्तापूर्ण चंदन के पौधे बनाने की प्रक्रिया पर अध्ययन जारी है।

सालों बाद तैयार होता है चंदन का पेड़

चंदन के पेड़ लगभग बारह से पंद्रह साल में तैयार हो जाते हैं। संस्थान में इसके पौधों पर एक एकड़ जमीन पर शोध चल रहा है ताकि तैयार होने की अवधि को कम किया जा सके। चंदन परजीवी पौधा है, इसलिए इस पर शोध चल रहा है कि उसे कौन सा मेजबान (खुराक देने वाला) पौधा चाहिए और उसे कितना खाद और पानी चाहिए। चंदन के पौधे को बेहतर खुराक मिल सके।

मुनाफे की खेती

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजकुमार ने बताया कि चंदन का पेड़ जितना पुराना होगा, उतना ही उसकी लागत होगी। 15 साल के बाद एक पेड़ की कीमत 70 हजार से दो लाख रुपये तक हो जाती है। ये खेती बहुत लाभदायक है। 50 पेड़ लगाने से एक व्यक्ति 15 साल बाद एक करोड़ रुपये का मालिक बन जाएगा। सालाना औसत आय सवा आठ लाख से अधिक होगी। घर में बेटी या बेटा होने पर 20 पौधे भी लगा दें, तो शादी के खर्चों की चिंता नहीं होगी।

 चंदन होता है, परजीवी पौधा

चंदन एक परजीवी पौधा है, जैसा कि वरिष्ठ वैज्ञानिक (कृषि वानिकी) डॉ. राज कुमार ने बताया। यानी वह अपनी खुराक खुद नहीं लेता। बल्कि एक दूसरे पेड़ की जड़ से भोजन करता है। जहां चंदन लगता है पास में कोई और पौधा लगाना होगा। क्योंकि चंदन अपनी जड़ों को पड़ोसी पौधे की जड़ों की ओर बढ़ाकर उनकी जड़ों से जुड़ जाता है और उनकी जड़ों से अपनी खुराक लेने लगता है

चंदन की खेती का दिया जाएगा प्रशिक्षण

संस्थान ने चंदन के पौधे पर काम शुरू किया है। जिस पर विज्ञान और तकनीक का काम चल रहा है। इसके तहत किसानों को भी खास तकनीक से चंदन की खेती करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें पेड़ों के बीच की आवश्यक दूरी बताई जाएगी। कितनी खाद को पानी चाहिए? चंदन के साथ कुछ अतिरिक्त फसलें ली जा सकती हैं। यह काम खासकर कम पानी वाली दलहनी फसलों पर किया जा रहा है।

डॉ. राज कुमार ने किसानों से कहा कि वे चंदन की खेती के प्रति जागरूक हों क्योंकि चंदन की खेती के साथ फलदार पौधे भी लगा सकते हैं। क्योंकि चंदन के पेड़ को 15 साल बड़े होने में लगेगा, तब तक उन्हें दूसरी ओर से लाभ मिल सकता है। लेकिन यहां के विशेषज्ञ आपको बताएंगे कि फलदार कौन से लगाने चाहिए।

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