Paddy Farming: धान की पाँच जबरदस्त किसमें, जिनकी खेती कर कमा सकते है मोटा मुनाफा
Saral Kisan: धान, भारत, चीन, जापान, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित एशिया महादेश के लगभग सभी देशों में खेती होने वाली मुख्य फसल है। यह आबादी के मुख्य आहार के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। विशेष रूप से भारत में उगाई जाने वाली बासमती चावल की खेती पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। धान की बेहतरीन किस्मों की खेती करने से किसानों को बंपर पैदावार मिल सकती है। इस लेख में हम धान की कुछ बेहतरीन किस्मों और पैडी फार्मिंग की महत्वपूर्ण तकनीकों पर चर्चा करेंगे।
पूसा-1401 बासमती
पूसा-1401 बासमती धान एक बेहतरीन किस्म है जो बंपर उपज देने के लिए प्रसिद्ध है। यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से डेवलप की गई है। पूसा-1401 बासमती चावल एक अर्ध-बौनी विशेषता वाली किस्म है जो 140 दिनों में पक जाती है। इसके बाद किसान भाइयों को इसे कटाई करने की अनुमति मिलती है। इसकी खेती आस्थाई जल स्रोतों के क्षेत्रों में भी की जा सकती है। पूसा-1401 बासमती धान की प्रति हेक्टेयर उपज 4 से 5 टन होती है।
कवुनी Co-57
कवुनी Co-57 धान भी एक उत्कृष्ट विकल्प है जो पैदावार में वृद्धि कर सकता है। इस किस्म का विकास तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने किया है। कवुनी Co-57 धान की विशेषता है कि इसकी उपज सामान्य धान की तुलना में दोगुनी होती है। यह काले चावल की एक विशेषता वाली किस्म है। इसकी खेती किसान भाइयों को पूरे साल चला सकती है और यदि वे इसे एक हेक्टेयर में उगाते हैं तो उन्हें 4600 किलोग्राम उपज मिलती है। कवुनी Co-57 धान की खेती करने वाली फसल 130-135 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी तुलना में इसमें 100% अधिक रोग प्रतिरोध होता है।
पंत धान-12
पंत धान-12 धान की एक और महत्वपूर्ण किस्म है जो बहुत तेजी से पकने वाली होती है। इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने G.B. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी के सहयोग से किया है। पंत धान-12 धान की उच्च पैदावार और तेजी से पकने की वजह से प्रसिद्ध है। यह किस्म 105-110 दिनों में पक जाती है और इसकी प्रति हेक्टेयर उपज 6 से 7 टन होती है। पंत धान-12 धान की खेती करने वाले किसान भाइयों को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है।
अन्य उपयुक्त किस्में
इसके अलावा धान की और भी कई उपयुक्त किस्में हैं जैसे कि पूसा-44, पूसा-33, पूसा-1, पंजाब बासमती, शुभ्रा, एचबी-आर ४७, एचबी-आर ४९, एचबी-आर ५०, सोनालिका, शर्मिला, उत्कल श्री, ज्ञानेश्वर, इन्द्रधनुष, वरुणा, और बिनोदिनी आदि। ये किस्में भी उच्च पैदावार और अधिक मुनाफे के लिए उगाई जा सकती हैं।
उन्नत खेती तकनीकों का उपयोग
पैडी फार्मिंग में सफलता के लिए उन्नत खेती तकनीकों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। कुछ मुख्य तकनीकों में शामिल हैं:
जल संरक्षण
जल संरक्षण को महत्वपूर्ण ध्यान में रखते हुए खेती करना जरूरी है। बौद्धिक खेती करके पानी का उपयोग कम करने वाली तकनीकों का उपयोग करें। बूंद प्रणाली, ट्रिकल सिरोप, सटीक जल आपूर्ति आदि जल संरक्षण की दिशा में काम कर सकती हैं।
समयबद्ध बीजाई
बीजों को समयबद्ध ढंग से बोएं ताकि पौधों का विकास और पैदावार अच्छी हो सके। समयबद्ध बीजाई तकनीकें जैसे ड्रम सीडर, सीड डिब्बर, खुदाई से बीजाई आदि इसमें मदद कर सकती हैं।
सही खाद संरचना
खाद को सही संरचना में खेत में मिश्रित करें ताकि पौधों को संपूर्ण पोषण मिल सके। कमी या अधिकता से बचने के लिए खाद का विश्लेषण करवाएं और उपयुक्त खाद उपयोग करें।
वातावरणिक प्रबंधन
पेस्टिसाइड्स और कीटाणुनाशकों का उपयोग सतर्कता से करें और उन्नत वातावरणिक प्रबंधन के तत्वों को शामिल करें। प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग, संघटित रोग प्रबंधन, प्रचार-प्रसार तकनीकें, रोग प्रतिरोधी किस्मों की खेती आदि इसमें मदद कर सकती हैं।
इन तकनीकों का उपयोग करके धान की उत्पादनता में सुधार किया जा सकता है और किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। इसके लिए किसानों को उचित तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण भी प्रदान की जाती है।