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धान खेती करने के लिए आ नई तकनीक, खर्च घटेगा और आमदनी में मिलेगी बढ़ोतरी

Rice Farming :किसानों को परंपरागत तरीके से खेती करने पर अधिक खर्च करना पड़ता है। साथ ही इसमें टाइम भी अधिक लगता है। फिलहाल धान का सीजन जोरो सोरों पर चल रहा है। देश के लगभग राज्यों में धान की बुवाई कर ली गई है। कुछ ऐसे राज्य हैं जहां बारिश लेट होने की वजह से अभी भी धान की रोपाई चल रही है। उनको हम धान की खेती के लिए एक ऐसी विधि बता दे जा रहे हैं, इससे धान की खेती देगी बंपर पैदावार।

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धान खेती करने के लिए आ नई तकनीक, खर्च घटेगा और आमदनी में मिलेगी बढ़ोतरी

System Of Rice Intensification : भारत के अधिकतर राज्यों में चावल की खेती बंपर की जाती है। वैसे तो सभी जगह धान की फसल की बुवाई का समय एक समान ही होता है। परंतु कुछ राज्य ऐसे हैं जहां धान की रोपाई लेट तक की जाती है। किसान अपने खेत में पारंपरिक तरीके से धान की फसल रोपाई करते हैं।

किसानों द्वारा सबसे पहले धान की नर्सरी तैयार की जाती है। उसके बाद पौधों को खेत में रोपाई करते हैं। यह विधि काफी लंबी होती है। इसके लिए किसानों को खाली पड़ी जमीन को खरपतवार से बचाने के लिए बार-बार जुताई करनी पड़ती है। खेत में सिंचाई कर मिट्टी को गला कर तैयार करना पड़ता है। उसके बाद धान की तैयार की गई पौध को रोपा जाता है। इस विधि में किसानों को अधिक पैसा तथा समय बर्बाद करना पड़ता है। अगर किसान चाहे तो इस विधि को छोड़ अनेक तरह की अलग-अलग विधि से कम खर्च तथा कम समय में धान की फसल की बुवाई कर सकते हैं।

श्री विधि में बीज के साथ समय की भी बचत

इस विधि से धान की खेती करने पर फसल किसान को बंपर मुनाफा दे सकती है। श्री विधि जिसे सिस्टम ऑफ राइस इंटेंशन भी कहा जाता है। यह एक उन्नत कृषि विधि है। जो धान की फसल की उपज बढ़ाने के लिए विकसित की गई है। इस तकनीक के माध्यम से किसान पौधो (बिचड़ों) के बीच की दूरी 25 सेंटीमीटर रखते हैं, और एक-एक कर पौधा लगाते हैं। इससे हर पौधे को अच्छा गैप मिलता है।

इस तकनीक में पारंपरिक विधि की तुलना में पौधे को 12 दिन की उम्र में खेत में रोपा जाता है। जबकि पारंपरिक तकनीक में यह प्रक्रिया 20 से 25 दिन के पौधे में होती है। इस तकनीक में पानी की आवश्यकता भी कम होती है। खेत को कभी सुख तथा कभी गीला रखा जाता है। जिस जमीन को हवा लगने के के कारण पौधों की जड़े विकसित होती है।

श्री विधि में बीज की लागत कम होती है। पारंपरिक विधि की बात करें तो उसमें बीज दर 5 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। हालांकि श्री विधि से बिजाई करने पर 2 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। इसमें प्रति एकड़ 20-25 प्रतिशत उपज में भी बढ़ोतरी हो सकती है।

जीरो टिलेज तकनीक

इस तकनीक को शून्य जुताई विधि भी कहा जाता है। इसमें किसानो को बिना किसी तरह की जुताई के खेत में सीधा बीज की बुवाई की करनी होती है। इससे खेत की तैयारी में समय तथा लागत की बचत होती है। पारंपरिक तरीके से धान की बिजाई करने पर खेत की 6-7 बार जुताई करनी पड़ती है। जिसमें लगभग 2500 से 3000 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर खर्च आ जाता है।

जीरो टिलेज विधि में हैप्पी सीडर या जीरो टिलेज मशीन का प्रयोग किया जाता है। इसमें बीज की गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर रहती है और बीज के ऊपर मिट्टी की हल्की परत बन जाती है। इसे बीज का जमाव अच्छा होता है और फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।

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