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बिना छिलके वाले जौ की खेती होगी वरदान साबित, खारे पानी में भी मिलेगा बंपर उत्पादन

Barley varieties :जौ की खेती करने के लिए कम पानी की जरूरत होती है, दो बार सिंचाई करने के बाद जौ कि यह किसम देगी अच्छी उपज, जिन किसानों के कुएं का पानी खारा है उनके लिए जौ की यह वेरायटी होगी वरदान साबित।

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बिना छिलके वाले जौ की खेती होगी वरदान साबित, खारे पानी में भी मिलेगा बंपर उत्पादन

Barley varieties : पूर्वजों के जमाने में जौ हमारे खाद्य पदार्थों में मुख्य सामग्री होते थे, बाद में धीरे-धीरे बदलते जमाने में चावल और गेहूं ने इसकी जगह ले ली, गेहूं और चावल बेशक छिलका रहित हो और जौ से स्वादिष्ट हो, परंतु कोविड काल के दौरान लोगो को जौ ने एक बार फिर अपनी अहमियत याद दिला दी।

बीते 10 सालों में जौ की मांग में 10 फीसदी अधिक इजाफा हुआ है, बीते साल 2023 में अंतर्राष्ट्रीय पौष्टिक अनाज वर्ष के रूप में मनाए जाने के के बाद जो की बढ़ती मांग को देखकर राजस्थान कृषि अनुसंधान केंद्र जयपुर ने जौ की एक ऐसी किस्म तैयार की है जो गेहूं चावल की तरह छिलका रहित है, इसमें भरपूर मात्रा में पौष्टिक पाया जाता है, मैदानी इलाकों में इसको उगाया जा सकता है, खारा पानी होने पर भी देगी अधिक उपज,जौ की यह किसम चमका देगी राजस्थान के किसानों की किस्मत। 

जौ में बीटा ग्लूकेन नामक फाइबर होता है जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है

भारत में जौ का इस्तेमाल न सिर्फ पारंपरिक बल्कि व्यावसायिक तौर पर भी किया जा रहा है। इसमें पाया जाने वाला बीटा ग्लूकेन सेहत के लिए उपयोगी होता है।  डायटीशियन डॉ. अमिता अग्रवाल का कहना है कि इसमें विटामिन और मिनरल भरपूर मात्रा में होते हैं। ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है जो ब्लड शुगर के लिए कारगर है। इससे बनी दवा का इस्तेमाल काफी कारगर है। इसका इस्तेमाल चॉकलेट, सिरप, कैंडी और जौ का दूध बनाने में होता है। अन्य उत्पादों में इसके उत्पादन का 60% बीयर बनाने, 25% पावर ड्रिंक्स, 7% दवाइयों और 8 से 10% व्हिस्की बनाने में इस्तेमाल होता है।

22 लाख हेक्टेयर घटा जौ का रकबा

1960-70 में भारत में 28 से 30 लाख हेक्टेयर में जौ की खेती होती थी जो अब घटकर 8 लाख हेक्टेयर रह गई है। राजस्थान में 2.25 लाख हेक्टेयर में जौ की खेती होती है, औसत पैदावार 27.50 क्विंटल/हेक्टेयर है।

छिलका रहित जौ की नई किस्म का उद्देश्य गेहूं का विकल्प तलाशना है।  विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि अगले कुछ वर्षों में जौ भारत ही नहीं बल्कि विश्व में प्रमुख खाद्यान्न के रूप में अपनी अलग पहचान बनाएगा। 

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