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पिछले साल के मुकाबले कपास की कीमतों में 40% कमी, बुवाई का बढ़ा रकबा

रामनाथपुरम में धान के साथ-साथ कपास की खेती सबसे बड़े स्तर पर की जाती है। रामनाथपुरम के 9000 हेक्टेयर रकबे में किसानों ने दूसरे सीज़न के लिए भी कपास को विकल्प के रूप में चुना है।
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पिछले साल के मुकाबले कपास की कीमतों में 40% कमी, बुवाई का बढ़ा रकबा

Cotton Price : किसानों को कपास की अच्छी पैदावार मिलने के बाद भी बढ़िया भाव के लिए परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कपास की अधिक उपलब्धता के चलते कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है। कपास की कीमतों में ऑफ सीजन के चलते 40% से अधिक गिरावट देखने को मिल रही है। जो खुले बाजार में भी ₹50 से कम है। कपास की घट रही मांग को देखते हुए व्यापारी और किसान राज्य सरकार से सहायता की मांग कर रहे हैं।

रामनाथपुरम में धान के साथ-साथ कपास की खेती सबसे बड़े स्तर पर की जाती है। रामनाथपुरम के 9000 हेक्टेयर रकबे में किसानों ने दूसरे सीज़न के लिए भी कपास को विकल्प के रूप में चुना है। जिससे कपास के रकबे में 1000 हेक्टेयर की वृद्धि देखने को मिली है। मार्च में शुरू हुई कपास की बुवाई का सीजन अब खत्म होने की कगार पर है।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किसानों को बाजारों में कपास बेचने की पेशकश की गई है। क्योंकि अधिकतर किसान अब तक खुले बाजार में अपनी फसल बेच रहे हैं। अभी के समय की अगर बात करें तो कपास का बाजार मूल्य ₹4900 से 5500 प्रति क्विंटल चल रहा है। कीमत गुणवत्ता के साथ बदलती रहती है।

बीते साल की बात करें तो कपास की कीमतें 7 से 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल चल रही थी। लेकिन इस साल कपास के रेट में काफी गिरावट देखने को मिली है। कटाई के समय कपास की खेती में अधिक मजदूरों की जरूरत पड़ती है। जो किसानों के लिए काफी महंगा पड़ रहा है। क्योंकि प्रत्येक मजदूर प्रतिदिन ढाई सौ से ₹300 लेता है। इसी वजह से किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

प्रदेश में कई कपास मिले बंद हो चुकी है और बची हुई कपास मिले माल खरीदने से परहेज कर रही है। पर्याप्त मात्रा में स्टॉक होने के कारण मिल मालिक माल खरीदने को तैयार नहीं है। दूसरे सीजन के दौरान कपास के गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। जिसके चलते बाजार में भाव ₹5000 से नीचे चल रहे हैं। क्योंकि मार्केट में अच्छी गुणवत्ता वाली कपास की कीमत 7000 से ऊपर चल रही है। मिल मालिकों का कहना है की घटा लगने के बावजूद भी मार्केट में बने रहने के लिए कपास खरीद रहे हैं।

इसी कड़ी में व्यापारी शिवकुमार ने बताया कि अधिकतर किसान कपास की पारंपरिक किस्म का चुनाव करते हैं। जिनकी घटिया गुणवत्ता के कारण बाजार में मांग कम रहती है। राज्य सरकार को शंकर बीजों की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। जिससे किसानों को शानदार गुणवत्ता वाली फसल मिल सके।

किसानों को इस बात को सुनिश्चित करने के लिए तदनुसार योजना बनानी चाहिए कि फसल को ऑफ-सीजन में काटा जा सके, क्योंकि मांग अधिक होगी, जिससे अधिक कीमत मिल सकती है।" उन्होंने कहा कि हालांकि केंद्र सरकार ने कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 7000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन बाजार में कीमत बहुत कम है। उन्होंने सरकार से धान की तरह कपास को भी MSP पर खरीदने का आग्रह किया, क्योंकि इससे किसानों को मदद मिल सकती है।

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